विधा- गजल
काफिया- आते
रदीफ- तुम्हें
मापनी- 2122 2122 2122 212
मांग लाई देव से हर जन्म के नाते तुम्हें ।
साथ जीना साथ मरना राज बतलाते तुम्हें ।।
ईश भी चाहे अलग करना, वही युग युग अड़ी।
सत्य मेरा प्रेम, प्रतिपल शुचि हृदय पाते तुम्हें ।
मांग की लाली सदा दमके, यही वर मांगती।
मेंहदी में अक्स तेरा, नूर नव भाते तुम्हें ।
सात बंधन से बँधी रिश्ता फले फूले सजन।
दो जहाँ का संग प्रियतम, सत्य समझाते तुम्हें।
हाथ कंगन से भरी हो, पाँव पायल नित बजे।।
प्राण त्यज हम मृत्यु से भी छीनकर लाते तुम्हें
वर्ष बीते पर नहीं बीती हमारी मान्यता ।
पूजती बड़ को अमर सौभाग्य के वास्ते तुम्हें ।।
चाँद सा चमके पिया यश कृति, हुई सच कामना ।
सावित्री सी है उषा उर आर्द पिघलाते तुम्हें ।।
उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड
Monday 25 May 2020
Sunday 24 May 2020
बासंती ऋतु आई
लाली छिटकी गगन पे , सुर्ख उषा है मुग्ध ।
रूप सुहावन दृग लगे , लगते निर्मल भोर ।
पंछी कलरव वन करे, झूम रहे मन मोर ।।
झांकती खिडकी से किरण ,,पुलक रहे हैं गात ।
रश्मि डाल पर छिटकती , स्वर्णिम लगते पात।।
उषा झा स्वरचित
सुषुप्त जीव में हलचल, छायी नेहिल गंध ।।
पंछी कलरव वन करे, झूम रहे मन मोर ।।
झांकती खिडकी से किरण ,,पुलक रहे हैं गात ।
रश्मि डाल पर छिटकती , स्वर्णिम लगते पात।।
मन का बिरवा पल्लवित, पुष्पित ठूँठ पलास।
मधुकर भी मँडरा रहे, प्रीतम लगते खास ।।
पुरवाई ऐसी चली , महके चंदन गात ।
विहग वृंद मधुराग मय,वृक्ष सजे नव पात।।
नेह भरे ऋतु राज मन ,पोर पोर रंगीन ।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन ।।
सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।
दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।
फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।
लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।
पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत ।
लता कूँज में झूमती, आये हो ज्यूँ कंत ।।
कानों में रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल लेते जीत ।।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन ।।
सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।
दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।
फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।
लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।
पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत ।
लता कूँज में झूमती, आये हो ज्यूँ कंत ।।
कानों में रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल लेते जीत ।।
जीवन की निधि प्रेम है, दिल में भरो अपार ।
मन आंगन पुष्पित करे, प्रेम मई संसार ।।
मन आंगन पुष्पित करे, प्रेम मई संसार ।।
उषा झा स्वरचित