Tuesday 10 October 2023

नवीन छंद

*मात्रिक छन्द*
जिन छंदों में मात्राओं की संख्या, लघु तथा गुरु स्वर, यति तथा गति के आधार पर पद रचना होती है, उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं। 

दूसरे शब्दों में- मात्रा की गणना के आधार पर रचित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाता है। मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या एक समान रहती है लेकिन लघु तथा गुरु स्वर के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
इसमें वार्णिक छन्द के विपरीत, वर्णों की संख्या अलग-अलग हो सकती है और वार्णिक वृत्त के अनुसार यह गणबद्ध भी नहीं होते है, बल्कि यह गणपद्धति या वर्णसंख्या को छोड़कर केवल चरण की कुल मात्रा संख्या के आधार पर ही नियमित होते है।

मात्रिक छंद के प्रकार
मात्रिक छंद के मुख्य तीन प्रकार के होते हैं।

सममात्रिक छंद
अर्द्ध सममात्रिक छंद
विषम मात्रिक छंद

1. सम मात्रिक छंद --- जिनकी प्रत्येक पंक्तियों पर समान मात्राएँ , यति होती है। ये चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं ।  ये मापनी युक्त एवं मापनी मुक्त दोनों तरह के होते हैं।

अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा), अरिल्ल, पद्धरि/पद्धटिका,चौपाई (सभी 16 मात्रा), पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा), राधिका (22 मात्रा), रोला, दिक्पाल, रूपमाला