Sunday 23 July 2017

दौड़

आज अजीब सा होड़ लगा है
एक दूसरे को पीछे छोड़
दौड़ में आगे बढ़ने का ...
सब बेतहासा भाग रहे हैं
दूसरे को हराकर खुद को
जीत का सेहरा पहनाने का
क्यों इतने बेताब हो मानव ?
कुछ क्षण सुस्ता ले, थोड़े अपनों
की खबर ले लो ...
जिसने तुझ पर स्नेह की वर्षा की है
उनकी भी परवाह कर लो..
आखिर क्यों उसे हराना चाहते हो ?
जिसने तुझको कभी समझा ही नहीं
प्रतियोगी ..
कभी अपनों से हार कर देखो
जीतने से भी अधिक खुशियों को
को महसूस करोगे ...
जीवन में सबसे जीत जाते हैं पर
अपनों के "वार" को सह नहीं पाते..

  

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