आज कल आत्मियता कम
दिखावा अधिक है लोगों में ..
जुबान पे मिठास होते हैं
खंजर भोंकते हैं पीठ में ..
सारे रिश्ते बेमानी लगते जब
अपने ही अपनों को छलते ..
लोग हर रिश्ते को कागज के
चंद टुकड़ों से तौलते ..
पूर्व कल्पित विचार से ही
दूसरे को आंकते ..
जानें क्यों अपनों को ढगते ..
निहित स्वार्थ की खातिर ..
तुच्छ लाभ के लिए एक दूसरे
का इस्तेमाल करते ..
क्षणिक सुख की खातिर ..
एक दूसरे के पाँव खिंचते
न जाने लोग क्यूँ कर
ऐसा करते?
न जीने का खुद का सलिका
न चैन से जीने देते दूसरे को ..
चंद सिक्कों से ही लोगों के
साँसो को खरीद लिया जाता ..
किसी की सफलता देख
सब खुश होने के बदले
जलने लगते ...
लोगों की फितरत होती है
दूसरे को पीछे धकेलने का ..
लोग सह नहीं पाते छलावा
अपनों का ...
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