हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा
बहुत सारे भाषाओं को
आत्मसात किये हुए है ..
हिन्दुस्तान में हिन्दी
रीढ़ की हड्डी है ..
पूरब से पश्चिम तक
जोड़ के रखती है ..
अनेकों को एक ही
भाषा में पिरोती है ..
पर मुट्ठी भर अग्रेजों
के चमचे हिन्दी बोलने
में कतराते हैं ..
अपने ही घर में
सौतेलेपन का शिकार
बन गयी है हिन्दी ..
कुछ लोग हिन्दी बोलने
वालों को हेय दृष्टि से
देखते है..
अंग्रेज चले गए पर
गुलामी की मानसिकता
छोड़ गए ..
उँची सोसायटी में
हिन्दी बोलना तुच्छ
समझते हैं लोग ..
अपने ही लोग
रीढ़ की हड्डी
तोड़ने में लगे हैं ..
हिन्दी हमारी सभ्यता
और संस्कृति में
रची बसी है ..
दूसरे भाषा का
करें सम्मान ..
पर अपनी भाषा का
न करें अपमान ...
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