Wednesday 27 September 2017

बचपन वाला दशहरा

हे माँ दुर्गे कितने भी
बड़े पंडाल में करूँ 
आपकी अर्चना ..
कितने ही भक्ति भाव से
 करती हूँ आप की पूजा.
पर बचपन वाली
वो उल्लास भरी
आस्था मन को कहाँ मिलता ?
दादा जी के लिए
 मिट्टी का शिवलिंग बनाना ..
 बहनों से होड़ में अधिक
 बनाकर जीतना..
वो फूलवारी में फूल
चुनने जाना ..
रंग बिरंगे फूलों से
ड़ाली भरकर लाना ..
 देती थी खुशी मन को कितनी !!
काश वही दिन फिर से
आ जाए !!
नए नए कपड़े पहन
दादाजी और चाचाजी
सबसे अलग अलग
रूपये ले दोस्तों संग
  मेला घुमना ..
आह कितना अच्छा लगता ..
आज कल के बड़े बड़े
 कल्चरल प्रोग्राम
 देखने से भी अधिक
 गाँव का राम लीला
अच्छा लगता  ..
माँ भगवती की मूर्ति दर्शन
भोग ग्रहण कर भी
उतना आनंद ना मिलता
बचपन वाला दशहरा
कभी नहीं आता ..

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