तुम्हारे होने का आहट
एक काल्पनिक एहसास
जबकि तुम बहुत दूर हमसे
लगता हर ओर सन्नाटा
मन जैसे सिमटा सिमटा
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..
याद कर वो मुस्कुराहट
लगता वो लम्हें आए लौट
खामोशी जाती मिट
खुशियाँ आती लौट
मन दुखी सा लगे जब भ्रम टुटे
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..
रात्रि कालिमा हमें डराती
आहट किसी के कदमों के लगे
डरावने सपने आते विचित्र
कल्पनाओं में हमेशा विचरती
यादें मन को कर देती द्रवित
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..
यादों का पहरा हरवक्त होता
आस पास किसी का न साथ
अकेलापन ही अब मेरे साथी
सूनापन में ऐसे घिरे मन
जैसे चाँद छुपे बदलियों में घने
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..
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