परिवर्तन मौसम का ,
तकाजा है सृष्टि का ..
स्वयं पृथ्वी गतिमान
नियत पथ पर चक्कर
लगाती रहती बारंबार ..
यहाँ स्थिर कुछ भी नहीं
सब बंधे अपने परिधि से
सब कुछ चलायमान
जाने किसके इशारे से !
कठपुतली के तरह
सभी नाच रहे ..
कोई तो है जो इस जग को
चला रहे ..
दिन के बाद रात का आना
नियत समय से ऋतुओं का
बदलना ..
एक आश्चर्यजनक पहले ही
तो है ...
सब कुछ पल पल बदल रहे
बचपन धीरे धीरे यौवन में
यौवन से जाने कब ढल जाती उम्र
तनिक भी आभास नहीं होता ..
एक एक सांस के साथ हम जीये
लगता अभी तो है बांकी दिन ..
सचमुच हमने इतने वर्षों तक
एक एक क्षण को आत्मसात कर
पूरे किए हैं जीवन
हर पल को अपने कर्मों की
भट्टी में जलकर..
साहसा यकिन ही नहीं हो पाता ..
और आ जाता निकट समय
हो जाते पूरे हमारे घंटे मिनट
उस अंतर्यामि के इशारे
पे चल पड़ते एक
नए गंतव्य की ओर ...
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