जग में यूँ तो आते सब अकेले
पर ज्योंहि बितता सबके बचपन
बंध जाते प्रणय सूत्र में दो जिस्म
और बन जाते एक जान ..
जीवन के उँचे नीचे पगडंडियों में
चलते दोनों संभल संभल कर
फिर आती खुशियों की सौगात
गूँजती किलकारियाँ घर आंगन में ..
परिवार के सुंदर नींव डालकर
खो जाते बच्चों के लालन पालन में..
जिम्मेदारियों की व्यस्तता बढ़ती जाती
मिलता चैन बच्चों की भविष्य सजाकर ..
समय के धारा में बह जाते ऐसे
फिर जाने कितने दूर निकल जाते..
फंस जाते बीच भंवर में ऐसे
किस्मत से ही उससे निकल पाते
किनारे पे आते आते थक ही जाते ..
नियति के क्रूर प्रहार जब पड़ता
दोनों ही बिछुड जाते एक दूजे से
यादों के साथ ही बाकी जीवन जीते
समझ भी न पाते वक्त फिसल जाता..
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