Friday 12 January 2018

दोहरे चरित्र

यहाॅ मैं मनुष्य के दोहरे मापदंड की चर्चा करना चाहती हूॅ।बात उन दिनों की है जब मैं अपने परिवार के साथ सरकारी आवास में रह रही थी ।सुबह उठकर बेधडक फूल तोड़ कर अपने सहकर्मी के घर से ले आती ।यहीआदत मैं अपने निज काॅलोनी में आकर अपनायी ।मेरे घर के सामने एक भाई साहब हैं उनके घर चली गई दो फूल तोड़ने ।उन्होंने धीरे से कहा तोड़ लीजिए ।पर उनका मुॅह लटक गया ।मुझे आश्चर्य हुआ कि जो हमेशा सहयोग और उदारता की बात करते हैं, वो भगवान के नाम पर दो फूल पर ही बिदक गये ।फिर बड़े बड़े गप्पें हाॅकना कहाँ तक उचित है ।
 ये तो एक छोटा सा उदाहरण भर है, इस घटना से इतर ..
मेरा मकसद उस ओर इशारा करना है कि लोग जैसे दिखते हैं वैसे होते नहीं हैं दरअसल में ..
आदर्शवादी का स्वांग रचना या अपने संपूर्ण जीवन मानवता के लिए समर्पित कर देना सबके बस की बात नहीं ।
बहुत से लोग कहते कुछ हैं ओर करते कुछ ओर..कथनी करनी दोनों में कोई मेल नहीं ..
किसी को उपदेश देना आसान है पर खुद से पालन करना मुश्किल है । खुद मिसाल बने तब दूसरे को सलाह दे ।केवल गप्पों से काम न चलता ।अक्सर लोग दूसरे के नुक्स निकाला करते पर जब अपनी बारी आती तो पीछे हट जाते हैं । दोहरे चरित्र का आचरण व्यक्ति को हास्यास्पद स्थिति में खड़े कर देते हैं  ....


No comments:

Post a Comment