शहर के भीड़ भाड़ और कोलाहल से उब कर एक दिन मेरे पति हमसब को
पहाड़ की सैर पर ले गए ।
नयनाभिराम दृश्यों से आच्छादित सर्पीली रास्ते देख अजब ही शुकुन
मिल रहा था ।हरे भरे वादियाँ और सिढ़ीनुमा खेतों को देखते देखते हमारी यात्रा भी पूरी हो गई ..
फिर हम पहँचे जिस जगह पर
उसका नाम जंगल मंगल ही था ।
घने जंगलों के बीच बनाया खूबसूरत उपवन जैसा ही था ।नीचे कलकल बहती छोटी पहाड़ी नदी थी ,चारों ओर हरियाली से आच्छादित पहाड़ बहुत खूबसूरत दिखता था ।
बरसों से एक डॉ का सपना इस खूबसूरत वादियों में अथक परिश्रम
लगा है इसे सजाने में ..बरगद के तने और टहनियों से गोलाकार वृत जैसा आकार देता कितने पेड़ बन चुका है ।
उस काटेज के सीढ़ी भी पेड़ के शाखाओं से बने थे ।बगल के जंगलों से जानवरों की आवाज सुनाई दे रही थी ।सुबह के सैर में बाघ और तेंदुआ दिख गया, मन हर्षित हो उठा ।सुबह नाश्ता कर हम सब थोड़े सुस्ताने
अपने कमरे में गए.. सामने खिड़की खुली थी ..
अचानक कुछ आहट सी सुनाई दी..मैं खिड़की के पास गई तो देखा हिरन अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ कुलाँचे मार रही थी ..सचमुच मैं बहुत ही आनंदित हो गई ..इससे पहले मैं जंगली जानवरों को इतने पास से नहीं देखी थी ।सचमुच ये सब देखके अभिभूत हो गई
थी ..और खासियत उस जगह की ये है कि डॉ साहब जाने माने प्लास्टिक सर्जन हैं और असाध्य रोगियों की सेवा बहुत ही कम कीमत में तन मन धन से करते हैं ।
स्कूल के बच्चों को भी उस जगह को दिखाने के लिए लाया जाता है ..
पर्यटक हो या पिकनिक मनाने वाले लोग डाॅ साहब रूचि लेकर एक एक दृश्य का अवलोकन कराते हैं ..
उस जगह से रात में देहरादून दीपों की माला पहनी लगती और मसूरी स्वर्ग सा रोशनियों से जगमगाता बहुत ही अद्भुत लग रहा था ..
सचमुच वो जगह अपने नाम के अनुरूप ही जंगल में मंगल को चरितार्थ कर रही थी ..
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