प्रभा जबसे शादी कर ससुराल आई ,सूरज निकलते ही बिस्तर छोड़ देती ।सुबह सुबह नित्य क्रिया से निबटते ही नहा धोकर
घर में बने मंदिर में पूजा कर आरती शुरू करती.. घर के सभी लोग उसकी सुरीलि आवाज से मुग्ध हो अपने अपने बिस्तर छोड़ मंदिर में आरती लेने आ जाते ।सबको आरती और प्रसाद दे प्रभा अपने पति महोदय के पास जाती ..अलसाये नितिन आरती ले कर प्रभा से झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलता ..तुम इतनी जल्दी चली जाती मेरा मन नहीं भरता ..
सुबह सुबह अर्ध निंद्रा में तुम्हें देखने को जी चाहता, पर तुमको मेरी फिकर नहीं ..अरे अरे क्या कह रहें हैं आप ..ससुराल में बहू देर से सोये अच्छा नहीं लगता ..आप भी उठ जाओ मैं चाय बनाती हूँ मम्मी पापा इंतज़ार करते होंगे ..मन ही मन नितिन बहुत खुश होता ..सोचता प्रभा कितनी अच्छी है, इसने आते ही घर को स्वर्ग बना दिया ।मेरे मम्मी पापा का भी कितना ख्याल रखती है ।
प्रभा जैसी बहू पाकर उसके सास ससुर, देवर ,ननद सभी बहुत खुश थे।उसने आते ही सारा घर संभाल लिया ..
प्रभा और नितिन के तीन बच्चे थे ।सबको प्रभा ने बहुत अच्छे संस्कार दिए ।सब पढ़ने में भी बहुत होशियार थे ।सब अच्छे ओहदे पाकर सट्ल हो गए ।
धीरे धीरे प्रभा की हड्डियाँ कमजोर होने लगी ..जोड़ों के दर्द से
परेशान रहती ।अब वो तड़के सुबह भी नहीं उठ पाती ..
परन्तु नितिन प्रभा के जैसे सब कुछ संभाल लिया ..
सुबह सुबह चाय बना प्रभा को जगाता और ताजगी भरी प्यार की झपकी से सहलाता तो अनायास ही प्रभा की आँखें खुशी से नम हो जाती । सोचती कितनी भाग्यशाली हूँ मैं नितिन को पाकर .. कितना वो ख्याल रखता ...
सचमुच पति पत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए होते ..
दोनों एक दूजे के पूरक भी ..
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