रीमा की अभी अभी शादी हुई ही और वो बच्चे को पाने की चाह बेकरारी से करने लगी । दिन में हर समय अपने बच्चे के नाम रखने का चुनाव करती रहती ।कभी सोचती संध्या तो कभी वर्षा , कभी पायल । रीमा बच्चे के मीठे ख्वाब में डूबी रही और दिन महिने बीतते गए परंतु अब तक उसकी आंचल सुनी ही रही ।
इस बीच जिसके भी बच्चे का नामकरण होता वो पट से कहती ये तो मैंने चुना था नाम, तूने (आपने)कैसे रख दिया ।
आए दिन वो इसी बात पर सबसे लड़ पड़ती ।
इधर हर तरह से इलाज करने के बाबजूद रीमा की गोद खाली ही रही ।डॉ भी परेशान और आश्चर्यचकित थे क्योंकि कोई भी कमी पकड़ में न आ रही थी ।
बच्चे की चाह ने रीमा के स्वभाव में तल्खी ला दी थी ..
किसी के घर में बच्चे की किलकारी सुनती तो वो जल उठती,
एक दिन उसके के दूर के भाई राकेश आए । उसने देखा बच्चे की अत्यधिक चाह में ही रीमा का स्वभाव बिगड़ गया है ।
राकेश ने रीमा को बहुत समझाया ,उसने कहा ये छोटे नवजात शिशु का क्या दोष जो तुम इससे जलती हो ?
जाने क्या कमी हुई अगले जन्म में जो अब तक तुम्हारी गोद सुनी है? कमसे कम इस जन्म में ऐसी गलती न करो जो अगले जन्म में भुगतना पड़े ? इस नन्हें मुन्नी से स्नेह करो तो क्या पता तुम्हारे घर भी फूल खिल जाए?
राकेश की बात सुन रीमा पश्चाताप के ज्वाला में जलने लगी ।
उस दिन के बाद वो कभी किसी से नामकरण को लेके न झगड़ती ।सबके बच्चे से खूब स्नेह करती । ग्यारह साल बाद ऊपरवाले ने उसकी सुनी गोद भर ही दिया ....
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