Monday 2 April 2018

पिछले जन्म का संस्कार

अक्सर माँ पापा को हर बात पे तकरार करते ही देखती ।कभी कभी कोफ्त होता हम बच्चों को उनके आपस के तकरार को देखके ।
पापा को आदत थी हर चीज सुव्यवस्थित और रूटीनबद्ध दिनचर्या की।तर्क के दायरे से बाहर बातें उन्हें पसंद नहीं थी. स्टेट फारवर्ड उनका व्यक्तित्व था.. गलतियों पे चुप बैठने वालों में से नहीं थे ।
माँ उतनी ही शांत और सहनशील थी ।गलतियों को  नजरअंदाज कर देती ।
किसी को दुख न पहुँचे ऐसी बातें कभी किसी को न कहती ।स्वभाव से इतनी स्वाभिमानी कि कभी पापा से भी अपनी फरमाइशे न कहती ।
दोनों के विपरीत स्वभाव होने के बाबजूद भी उनमें अगाध प्रेम था ।माँ के बिन बोले ही उनकी आवश्यकताओं को समझ जाते ।पापा  कभी गुस्सा करते तो जल्दी ही मान भी जाते, कहते माँ से ही हमारा घर जुड़ा है ।
सास ससुर व छोटे देवर और ननदों के साथ माँ ने खुबसूरती से सारे फर्ज निभाया ।कभी भी अपने मायके को बीच में न वो लायी ।माँ कहती हर लड़की को ससुराल और मायके की बातें बीच में नहीं लानी चाहिए, इससे रिश्ते में खटास आती है । माँ के स्नेहमयी व्यवहार ने सबके नजर में स्नेहील बना दिया था ।मायके और ससुराल दोनों जगह के लोग उनपे जान छिड़का करते ।
कहते हैं लोग बच्चों में संस्कार माँ ही बचपन में डालती है, माँ बेचारी तो जन्म के कुछ महिनें बाद ही अपनी माँ
माँ को खो दी थी ।
फिर इतनी समझदारी माँ में कैसे आई? सब ये सोच के अचंभित रह जाते ।शायद माँ के पिछले जन्म का संस्कार था जो वो सबसे इतना प्यारा रिश्ता निभा गई ..
उषा झा  (स्वरचित)
उत्तराखंड (देहरादून)

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