गौरी ने जाने कहाँ कहाँ से किस किस देवताओं के मन्नत से पुत्र गौरव को पाया था । उसके जन्म लेते ही उसकी दुनिया ही बदल गई थी । अपने बेटे को पालने में उसने अपनी सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया था ।कभी भी नौकर पे छोड़ कर बेटे को कहीं नहीं जाती । हर समय अपने बेटे के फिक्र में लगी रहती ।
गौरी ने अपने बेटे के लिए खिलौने का एक कमरा बना डाला था, उसमें हर तरह के खिलौने.. कारें ,रोबोट,स्पाइडर मेन आदि सजा था...उस खिलौने के बीच बेटे को देखकर वो मुग्ध हो जाती ..
"धीरे धीरे गौरव बड़ा हो रहा था ।अपनी माँ की उचित परवरिश से वह संस्कारी व प्रतिभाशाली बच्चे के रूप में जाना जाने लगा । "
माँ पापा के आज्ञाकारी तो वो था ही, साथ साथ सभी की इज्जत करता । इस कारण सभी उससे बहुत प्यार करते थे ।
"मेधावी गौरव सफलताओं को चुमते हुए केरियर में आगे बढ़ता गया "..
और अंत में, "वो पल भी आ ही गया जब आई आई टी में अच्छे रैंक लाकर माँ पापा का सिर ऊँचा किया ।" कम्प्यूटर इन्जिनियरिंग विषय से कोर्स पूरा करते ही उसे अमेरिकन कम्पनी में अच्छी जाॅब मिल गई ।
"गौरी ने बेटे की उज्ज्वल भविष्य के वास्ते दिल पे पत्थर रखकर ,बेटे को हँसते हँसते विदा किया ।"
कहते हैं ,बच्चे जो एक बार घर से जाते तो लौट के कहाँ आते !
"अब गौरी बेटे के टूटे खिलौने को भींगी आँखों से घंटो देखती रहती, मानो उन में अपने बेटे को ढूंढ रही"...
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