Friday 13 July 2018

गर्भपात

ये सच है सहमति बिना औरतों के
संभव नहीं हो सकता गर्भपात ।
नारी हमेशा विकट परिस्थियो के
सामने हो ही जाती है नतमस्तक
जो जन्म देती उनकी कायरता को ।
संबंध खराब होने के भय या आर्थिक
निर्भरता जड़ है ऐसे जघन्य कुकृती के ।

हर माँ का फर्ज करें थोड़ी साहस
मुकाबला करें समाज के ठेकेदारों से
अपने ही कोख की बच्चियों को वो
बचा ले बच्चियों को दुष्ट जालिमों से
करें माँ हर संभव प्रयास बचाने का
कैसी भी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए
महरूम न हो अजन्मी बच्ची जीवन से ।

सृष्टि की मूल तो बेटियाँ ही होती
कोख में अपने बीज को संभालती
नारी और धरती में है समानता
सबों को हमेशा देना ही जानती
बिन खेत बीज कैसे उपजेंगें ?
अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगी !
नौ महीने जिसे गर्भ में सहेजती
वही पुरूष उसे कैसे हैं कुचलते?
सृष्टि तो खत्म हो ही जाएगी ,
कन्या भ्रूण हत्या गर होती रहेगी ।

प्रकृति प्रदत्त समरूपता रब ने बनाई
खत्म इसे करने पे उतारू है मानव क्यूँ ?
गर बेटी न हो तो बहू कहाँ से आएगी ?
पीढ़ी दर पीढ़ी वंश कैसे आगे बढ़ेगी?
बिन बहनों के घर में खुशियाँ न चहकेगी !
भाइयों की कलाईयाँ सूनी ही रह जाएगी !
गर्भ से अजन्मे बिटिया की चीख 'मत मारो'
माँ पापा के ये अपराधबोध चैन छीन लेगी ।
लाड़ली के किलकारियाँ बिहिन आंगन
जैसे लगेगी मायूस, उदास व श्रीहिन ...

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