कल जब पापा आए थे कितने स्वस्थ थे ...सुबह के नाश्ते व दिन के खाने तक कितनी गप्पें हुई जरा भी आभास नहीं हुआ
रिया को कि ,उनको कोई तकलीफ है ।
शाम को फिर से आने की बात कहकर गए भाई के घर । आधी रात में खबर आई पापा बहुत सिरियस हैं ....।
सोते बेटे को छोड़ भागी वो हास्पिटल पर न जाने विधि को क्या मंजुर था ...? जीवन भर का गम देकर सुबह सुबह जुदा हो गए हमेशा के लिए ...!
शोक संतप्त परिवार ऐसे दुख में डूबा कि होश ही नहीं रहा
अगले ही दिन बच्चों के फाइनल परीक्षा है ....।
खैर बच्चे बेचारे खुद अपना ध्यान रखकर पढ़ाई कर रहे थे ।
पूरे घर में खचाखच भीड़ लगी थी...
पड़ोसियों और पंडित जी के बताए अनुसार चंदन के धूप शुद्ध घी का अंखड दीप जलाकर , तुलसी, मखान पान, गंगाजल ,
सोना व शहद पापा के मुख में डालकर रिया फफक पड़ी.... जार बेजार रोते रोते देशी घी का मालिश करते हुए वो बेसुध
ही हो गई ...।
भाई - भाभी और रिश्तेदारों ने माँ को संभाला हुआ था ..।
खैर शाम होते होते गाँव से भी भाभी भाई आ गए ....।
पार्थिव शरीर को हरिद्वार ले जाने की तैयारी होने लगी तो पंडित ने नाती रिशू को भी साथ ले चलने के लिए रिया से कहा....।
उनकी मान्यता थी ... नाती का लकड़ी देना हर नाना नानी के सौभाग्य की बात होती है ।
खैर माँ की इच्छा देखकर, "रिया ने रिशु से कहा चलो नाना जी की आत्मा की शांति के लिए तुम्हारा लकड़ी चढाना जरूरी है....।"
वो आया नाना जी के उपर फूल डालकर पैर छूकर प्रणाम किया । फिर सबसे कहा ! कल मेरा फिजिक्स का पेपर है ,
अगर मैं गया तो रात भर का समय बरबाद हो जाएगा... ।
"कल के पेपर में फिर मैं शत प्रतिशत नम्बर लाने से चुक जाऊँगा ।"
"अगर मुझे परीक्षा में अच्छे अंक आएँगे तो नाना जी को बहुत खुशी होगी ... क्योंकि नाना जी की दिली इच्छा भी यही रहती थी ....।"
" नाना जी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि भी यही है मेरी .....।"
नौवें क्लास के बच्चे के तर्कसम्मत बातें सुन सब अचंभित हो गए...!!
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