Thursday 30 August 2018

भ्रमित मानव

विधा - लावणी छंद

मनुज तेरा क्या लक्ष्य है ?क्यों,इस धरती पे जनम लिया
पथ तेरे क्यों भ्रमित हुए जो,,निज धर्मों को भुला गया ?

विश्व के उत्थान के वास्ते , वसुन्धरा पे जनम लिया
निज कर्तव्यों से मुँह मोड़  , क्यों मानव तू भटक गया

मिट्टी के तन से मोह इतना , समझ बैठा खुद को खुदा
खेल रहे सबके जीवन से ,, हुआ आज क्यों सोच जुदा

करते मुनाफाखोरी ..गला,, काट व्यापार के आदी
घिर गया स्वार्थ में मानव..है,मिलावट खोर की चाँदी

लोभ लालच का नंगा नाच ,,,सर्वत्र दिखाई दे रहा
मद में चूर दौलत के..दीन ,,,धनिक में दूरी बढ़ रहा  

मनुज तेरा क्या लक्ष्य है?क्यों,इस धरती पे जनम लिया
पथ तेरे क्यों भ्रमित हुए जो , निज धर्मों को भुला गया

सोने चाँदी में खोया वो , दिल में दया न धनिकों के
नेताओं की भर रही जेब ,,,खून चूसे  गरीबों के

कौन सच्चा कौन कपटी है ,पहचान बहुत मुश्किल है 
भाई बहन में न प्रेम स्नेह , माँ बाप बेघर हो रहे
 
जन्म से पहले अपनी बच्ची ,, को कोख में मार रहे
मर चुकी है आज मानवता , सगे सगे के दुश्मन है

जात पात में बँटा इन्सान ,,, खून खून के प्यासे हैं
तुम क्यूँ भूले मनुज एक ही,,परम ब्रह्म के संतान हैं

रो रही मानवता मही पे ,,, कौन किसके हितैषी है
मिले सभी को कर्मों के फल,, जाने क्यूँ तू भूल रहे 

मनुज तेरा क्या लक्ष्य है?क्यों,इस धरती पे जनम लिया
पथ क्यों तेरे भ्रमित हुए जो,निज धर्मों को भुला गया ?

नन्ही  व किशोरी भेंट चढ़ी , आज भी दुष्कर्मियों के
प्रभु भी उपर रो रहे होंगे,,, जुर्मी इन्सां देख के

दहशतगर्दियों के साये पले ,, जीवन देख भयभीत है
अधर्मियों हो जा सावधान , तुझे दण्ड मिलना तय है

पापियों क्यों नहीं समझ रहे ,,,खुले सभी द्वार नर्क के
हे अचला के सुत खोल नयन,तिमिर दूर कर तू उर के

कर ले मनुज कर्तव्य अपना ,,नव निर्वाण भू सजाये
गर्वित हो तुझ पे धरा ! बढ़ा,,,सम्मान, वो मुस्कुराये !

 

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