Thursday 23 August 2018

राम वंदन

विधा- हरिगीतिका

मैं आपके शरण में आई  , प्रभु दया कीजिए  1
अंधकार में डूबा तन मन,रक्षा मेरा कीजिए
 मोह माया में रहती पड़ी,ज्ञान मुझे दीजिए
 तुमसे न उर विमुख रहे,चमत्कार कर दीजिए ।

तुम ही प्रभु सृजन करते , देते अभय वरदान   2.
धरा पापियों से मुक्त हो,  करो उसका निदान
मैं अधम चरणों में लिपटी,कर मेरा समाधान
राम बिन जग का न आधार, हैं वो कृपानिधान

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     विधा- हरिगीतिका

मान ली पिता की आज्ञा ,राम वनवासी बने   1.
दशरथ के प्राण निकल गए, वैकुन्ठ वासी बने  
हाहाकार अब नगर करे,  अयोध्या सूनी लगे
कौशल्या रोये जार जार, सिय बिन जी न लगे

भरत के करूण पुकार सुन , राम भी विह्वल हुए   2.
सजल नयन से मिलकर गले, कसम ली रोते हुए
भैया से खड़ाऊ लिए भरत, चले नगर को लेके
राज धर्म अपना निभाया , तपस्वी जैसे बनके

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