विधा- दोहा/गीतिका छंद
छुट रहे पसीने अभी , आ गए अब चुनाव ।
फेंक रहे नेता गली,गली झूठ का दाव ।
21 2 2 212 2 21 2 2 212
खोलकर उर मत दिया था, दुख हमारी कब सुनी ।
जीत के तुम घमंड में अब ,कर न हम को अनसुनी
बेचकर तू शर्म हया ना,,,,डींग का पढ़ जूमला ।
सोचते ठग ले हमें वो ,,,,,,,फिर रहे वो फूसला ।
जो सिंहासन है दिलाया , भूलने कल थे लगे ।
पा गए ज्यों तुम सत्ता तो ,,,,, टालने क्यों थे लगे ।
सोच के अब तो सभी जन,वोट अब कर ने लगे
वोट देकर शपथ ले ली , भाव वो खाने लगे ।
छोड़ खेती झूठ की अब ,,,, बर गलाना छोडिए
बाँटना अब तो सभी को ,,,,,आज से ही छोड़िए
लोभ का झासा न देकर ,,,,काम उत्तम कीजिए
काम ही पहचान नेता ,,,,,कुछ नया तो कीजिए
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