विधा- -प्रदोष छंद
बेटियाँ दुख हर लेती,,,,, जन्म वो जब घर लेती
सींचे नेह नीरों से ,,, महके बाग कलियों से
खुशबू ज्यूँ बिखर जाता ,,,, तभी भंवरा आ आता
तोड़ लिया जाता कली ,,,, सुता की क्या खता भली
हर कदम पे बाधाएँ ,,,, ,रास्ता रोकने आएँ
माँ पिता का हृद रोता,,,, पढाना मुश्किल होता
विद्यालय भी असुरक्षित,,,,,गुरु के नैन जब कलुषित
हिफाजत करे जरूरी,,,,किसी को न दे मंजूरी
प्रतिभा को पहचान ले ,,,,जहां में उड़ान भर ले
है शिक्षित करनी बेटी,,,इज्जत बढाती बेटी
चाहे हो मुश्किल बड़े ,,,, खूंखार शेर पथ खड़े
हिम्मत उसका बढाना,,,,करे सबों का सामना
बेड़ी न दे पैरों पर,,,,, डाल न पत्थर राह पर
धरती नाप जाएगी ,,, जहां में छा जाएगी
बन्धन में न जकड़ उसे ,,,,उड़ने दे स्वच्छंद उसे
परवाज हम सभी बने,,,,बिटिया दिवस तभी मने
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