Sunday 20 January 2019

सघन घन बरसे

विधा- गीत

घनन घनन घन मेघा बरसे, सावन आये जिया जलाए
का से करूँ मैं प्रीत सीख री, मोरे पिया परदेश सिधारे ।

बिजली चमके दामिनी दमके
रह रहके मोरे ये दिल धड़के
आई है कैसी ये रात सुहानी
अँखिया जाने क्यूँ कर फड़के

आओ सजनवाँ निकट मोरे,कारी रैना मुझको डराए
घनन घनन घन मेघा बरसे ....

बागों में कोयल कू कू कूहके
सावन में देखो पड़ गए झूले
कजरी गावे सखी सब मिलके
प्रीतम संग सब कोई पींगे झूले

ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती मिलन पिपासा,नैना मोरे नीर बहाए
घनन घनन घन मेघा बरसे ...

तहाथों में सखी सब मेंहदी सजावे
करके श्रृंगार वो पिया को रिझावे
पड़ जाए चैना मोरे हिया को 
तुम बिन सजन मुझे चैन न आवे

किस विधी हो मिलन सखी री,आकुल हिय ने पीर बढाए
घनन घनन घन मेघा बरसे ...

जा रे बदरा तू जिया न जला
वन वन भटकूँ विरहा की मारी
ओ री पवन पिया को बूला ला
किछु नहीं भावे विरह की मारी

ज्यूँ ही पधारे पी सखी री, मन आंगन में खुशियाँ बरसे
घनन घनन घन मेघा बरसे ,सावन आये जिया हर्षाये

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