Thursday 7 February 2019

शर्म हया

विधा--कुन्डलियां

हया शर्म है फालतू,,,,कहता हर नर नार
मंजूर नहीं पाबंदी  ,,,पृथक उसका संसार
पृथक उसका संसार ,,,नये फैशन ही भाता
रोक टोक, बिन लगाम,,,सभी घोड़े दौड़ाता
मनमानी सब करे,,,मर्यादा ताक रख दिया
संस्कार की न बात ,,, उनको अब न शर्म हया

माता पिता के आदर्श,,,संतान गए भूल
पूरी करने वो इच्छा,,,, अदब उड़ाता धूल
अदब उड़ाता धूल,,भूल गया लाज शर्म सब
आधुनिकता हावी ,,,,हुआ,करे विचार न अब
अंकुश रहा न उनपर ,,,, नहीं सुझाव ही भाता
पाश्चात का शिकार,,, न हो सुत, डर में माता

गहना स्त्री का लाज है ,,,,रख लो  इसे संभाल
भली लगती नैन झुकी  ,,,, शर्म  से  लाल गाल
शर्म से लाल गाल,,,, रूप और निखर जाता
पर्दा में है सुरक्षा ,,,  छेड़  छाड़  न  हो  पाता
तहजीब संभाल के ,, सबका सम्मान रखना
इज्जत देंगे लोग,,,,लाज  नारी  का   गहना

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