Saturday 6 April 2019

पथ विहिन मनुज

मानव किस उद्देश्य से , तुम आए संसार
फंसे हुए भ्रम जाल में,मानव धर्म बिसार ।।

मनुष्यता की नाव में, बैठे हो तन धार
भूले हो कर्तव्य क्यों,बन धरती पर भार  ।।

यह माटी का देह ले, खुद को ईश्वर  मान
पर दुख से है विरत तू ,दम्भ लोभ की खान ।।

स्वारथ में मानव घिरा , खुद को कर संम्पन्न
जो पर पीड़न कर रहे ,सबसे बड़े विपन्न  ।।

मानव लोभ प्रवृति से , ग्रस्त हुआ सर्वत्र
सजा धजा फिर भी लगे ,जग को वह निर्वस्त्र  ।।

आया जग में किसलिए ,क्या है तेरा काम
पाप दिशा में भागता , मानी नहीं लगाम   ।।

दया धर्म को त्यागकर , कैसा तू धनवान 
राजनीति की ओढ़नी,गर्हित मन अभिमान    ।।

कौन देव दानव यहाँ ,कैसे हो पहचान
रक्त रक्त का शत्रु है , मनुज बना शैतान   ।।

भार कोख में बेटियां , जग करते शमशान
मातृशक्ति की दुर्दशा , करे अंधे इन्सान     ।।

मनुज मनुज के बीच में , नफरत की दीवार
जीवित हम कैसे रहें ,दुनिँया में बिन प्यार    ।।

मानवता रोती फिरे ,कौन किसी का  मित्र
अपनों के ही रक्त ले ,बना रहे वो चित्र     ।।

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