Thursday 30 May 2019

डूबे न किस्ती मन की

निज मन में मनुज  गांठ बांध लें
किस्मत से अधिक ,वक्त से पहले
नहीं मिले,चाहे कितने छटपटा लें ।
 
ऋतु बासंती मन को महकाती,
लहलहाती हरियाली चहूँ ओर
सूखी वसुधा फूलों सी मुस्काती
उषा वक्त पर अरुणिमा फैलाती ।
 
नियत समय ही सबके जीवन में
प्रस्फुटित होती कली मन कुँज में
खिलती है खुशियों की पंखुड़ियाँ
जुड़ जाती मन से मन की लड़ियाँ ।
 
नैनों के मोती पलकों में समेट लें
टूटे मन से मिलती है जीवन में हार
मिलेगी जीत खुद पे यकीन कर लें ।
 
 मन पुष्प कभी मुरझाने न दीजिए
धीरज से सदा सिंचिंत करते रहिए
चाहे आए कैसी भी परिस्थितियाँ
खुद को कभी बिखरने न दीजिए ।

हसीन लम्हें बस दामन में बटोर लें
रूठे रब को मनाना मुश्किल नहीं
बिखरे हुए रिश्तों के तार जोड़ लें ।

जीवन धार में आए कितने ही तुफां
मन की किस्ती को डूबने न दीजिए
समय और धीरज से ही मिल जाता
हर मुश्किलों से निकलने का रास्ता ।

Friday 17 May 2019

महका हरश्रृंगार

चिर मिलन की प्रतीक्षा में
कितना महक रहा हरश्रृंगार
दो पल की जिन्दगी लुटाके
करे नित्य रजनी का श्रृंगार...।

यामिनी पर सौरभ लुटा
हुआ न्योछावर पारिजात
तन मन किया सुवासित
मधु मिलन की आई रात...।

हरश्रृंगार लुटाने आया प्रीत,
दूर हुआ तम,निशा उन्मादित
बिखर गया उजास हृदय में 
सुरभित मन क्यों न हो मुदित.. ?

केसर धवल बिछे पारिजात,
झर झर कर करता मनुहार  ।
मलय पवन भी बहका सा,
प्रीत सुपावन देता उपहार..।

मुग्ध वसुधा भी उल्लासित
चंदन वदन लिए बिखर गया
हुए चाँद तारे भी अह्लादित
निस्काम समर्पण है अद्भुत ।

मुरझायेगा रवि के आने पर
हरश्रृंगार था शापित देवता से ।
विदा हुआ भोर के प्रथम पहर
मिटा,प्रेमपथ सुसज्जित कर..।

उषा की रक्तिम आभा झुलसी,
प्रचण्ड़ रूप दिनकर धर लेते  ।
गिरे पीत पर्ण सब पतझड़ में,
जीवन तो माटी में ही मिलते..।

Tuesday 14 May 2019

खजूर मद में चूर

मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर

विरल वन में  मुस्कुराता,
इठलाता नभ को छू कर ।
रहा विटप से अलग थलग,
अभिमान था उँचा कद पर ।
खुशियों का उर में बजे नुपूर
मद में चूर, मैं हूँ खजूर ..।

मधु मलय से दिल झूम गया,
मुग्ध मन ऋतु आगमन पर  ।
कानन भी कुसमित हो गया,
साख पर आई नव पत्तियाँ  ।
लगी शुचि फलियां तब प्रचुर,
मद में चूर, मैं हूँ खजूर..।

देखी जब भी वन में हलचल,
जगा हृदय में बहुत कोतुहल  ।
पपीहे, कोकिल गाये गान ,
और तितलियों के उड़े दुकूल ।
आम लीची जामुन पे बरसे नूर,
मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर ...।

दूर हुए सब,मुझसे न कोई आस
मिले न छाया,लगे फल अति दूर
लगे मेला आम जामुन के पास,
मुदित मनुज संग पशु- पक्षी
बना क्यों अलग, क्या मेरा कसूर,
मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर.....।

उनके ही जीवन का है मोल , 
लघु बन करे दूजे को उपकृत ।
हर कोई ही बजाते उनके ढोल, 
लंबे होकर जीना व्यर्थ  ।
सत्य भान से नैनों के छँटे शुरूर,
मद में चूर, मैं हूँ खजूर... ।

Monday 13 May 2019

माँ ही सब तीरथ

संसार के लिए
माँ एक वरदान ,
दिल से न लगाती
औलाद के भूल ।
सुकून से भरा
माँ का आँचल ।
ममता के फूल
पथ में बिछाकर ,
हर लेती सब शूल ।
माँ के वात्सल्य
में पला बचपन,
निखर जाता जीवन
देकर अस्तित्व दान ,
कराती जग का पहचान ।
माँ बिन हम निर्मूल
आफत जब आती
मिटाती दुख समूल   ।
आस के वृक्ष हैं बच्चे,
उनके फल व फूल हम
निर्मम बन दें न उन्हें गम  ।
माँ पिता के आशीष
ही सबसे बड़ा दौलत
चरणों में उनके सब तीरथ ।

Happy Mothers Day

Sunday 12 May 2019

मर्ज की दवा माँ

माँ से ही मिलता ये जीवन अनुदान
वही तो कराती है खुशियों का पान
हर खुशी व गम बाँटना उनसे भाता
उनके दम से बनते हैं योग्य संतान

कोई न जग में उतार सका माँ का कर्ज
मनुज भूलना न अपने कर्तव्य व फर्ज
औलाद  ही हैं माँ के सभी मर्ज की दवा
यही यथार्थ, सब धर्म व पंथ में है दर्ज

बच्चों की यादें संजोकर हिय में छुपाती
दर्द सहकर भी सबके लिए वो मुस्कुराती
जान लो सभी माँ के आँचल में ही तीरथ
विषम परिस्थितियों में ढाल भी बन जाती

गीले में सोकर सूखे में सुलाती बच्चों को
ओ संतति करना न लज्जित ममता को
थाली से बचा लेती जो टुकड़े मिठाई का
खिलाना तू हाथों से, छोड़ न जाना उनको

🌹HAPPY MOTHERS DAY🌹

Thursday 9 May 2019

कुब्जा हुई खड़ी

विधा - प्रदोष छंद

कंस के आमंत्रण पर,,श्री कृष्ण मथुरा पहुँचे
जन्म भूमि का तिलक ले,जननी की मुक्ति सोचे

मथुरा में कृष्ण को एक , अति वृद्धा पे दृष्टि पड़ी
केसर, चंदन-तिलक,ओ.. पुष्प हार लेकर खड़ी

झूकी थी कमर उसकी, पीठ पर थी कुबड़ पड़ी
कंस के महल में बूढ़ी, कुब्जा नामकरण पड़ी

राजा कंस के लिए वो,,, पुष्प का हार बनाती
नित्य ही वो पूजा का..थाल, खुशी से सजाती

राह रोक इक दिन कृष्ण,,,मुस्काते हुए बोले
सुन बुढ़ी कहाँ जा रही,,कंस तो परलोक चले

रूपसी तू ये सुन ले ,,कंस अब न राजा तेरा
केसर टीका हार से,, कर आज सत्कार मेरा

मेरे स्वामी कंस सदा,,भेंट तो दुँगीं उन्हें हीं
हँसी न उड़ाओ, लगे न..मुझे तेरी बात सही

श्री कृष्ण ने जब मारी,लात..हुई कुब्जा खड़ी
अज्ञान की पट्टी खुली,,,कान्हा के फिर पग पड़ी

Wednesday 8 May 2019

अंजुरी भर शब्द पुष्प

है शब्द पुजारी सृजन द्वार

अंजुरी भर शब्द पुष्प
हर्फ़ दर हर्फ़ बिखर गए,
हृदय के मेरे पन्नों पर ।
नव युग रचने को तैयार 
है शब्द पुजारी सृजन द्वार ।।

धूल दिलों में जम गए
 टूटे सभी रिश्तों के तार ,
 जिन्हें जोड़ना है आज  ।
 बचे न उनके उर में खार
है शब्द पुजारी सृजन द्वार  ।।

नेह नयन से पल में छलके
कहना उन्हें प्रेम ही संसार ।
रूठे पी के प्रीत न हो फीके,
झुमे आसमां द्वै दिल निसार ।
है शब्द पुजारी सृजन द्वार     ।।

धोना मन से मैल,गिराना है
घृणा द्वेष से बनी हुई दीवार ।
रूठे रिश्तों को भी मनाना है,
बहे न किसी के अश्रु बेकार  ।
है शब्द पुजारी सृजन द्वार   ।।

Sunday 5 May 2019

खामोशी

वेदना की बदलियों ने
आज आकाश घेरा
खामोशियों का पहरा
दिल पर बिठा दिया
जीवन उपहास बन गया
दिए जो दंश अपनों ने
वो सह नहीं पा रहा
पीर से उर सिसक रहा  ।

अपने पन का ढ़ोग
रचाते हैं सभी लोग
झूठी दया सहानुभूति
दिखाते हर एक इन्सान
झूठे स्वांग में सब फँस जाते
आज दिलों के रिश्ते
स्वार्थ में लिपटे होते  ।

अब दिल का लगाना
खेल ही तो हो गया
किसी को कुछ कहना
भाता नहीं किसी से बाँटना
खामोशी की चादर ओढ़ कर
सबसे छुप जाना पात्र,
यही है एक मात्र अस्त्र ।

दूसरे के दर्द का मखौल
सभी ही उड़ाया करते हैं
फिर किसी से कहकर
हँसी का पात्र बनना
किसको होगा स्वीकार
जब अपने ही खंजर
भोंक डाले वक्ष पर
फिर धीर कौन बंधाए
नैना फिर क्यों न नीर बहाए.. ?


Saturday 4 May 2019

कर्मवीर

कर्मवीर राह के कंटकों से तुम न घबराना
जिन्दगी के उत्तुंग शिखर पे सिर्फ चढ़ते जाना
करो अपने पे विश्वास मिलेगी मंजिल तुझको
किस्मत की रेखा बदलो तो, मुट्ठी में जमाना

संभल संभल के चलना यदि,पथ तेरा हो अंजाना
कभी कोई शकुनि की चालें,बना न ले तुम्हें निशाना
हर कदम पर घात लगाकर बैठा रहता है शैतान
दुष्ट कुटिल को पराक्रम से,ओ कर्मवीर आजमाना

कदमों तले मंजिलें होगी, दुश्वारियों को हराना
मन कभी हो परेशान तो भी खुद को नहीं रूलाना
संर्घष के राहों पे अविरल ओ मुसाफिर चलता जा
अंतर्मन का सुनना बने ,,चाहे कोई भी बेगाना

सागर सा विशाल पर्वत सम हृदय अटल बनाना
फौलादी जीगर पर होगा फिर,, निसार जमाना
मानवता का मशाल थाम लो, करे जग गुण गाण
भेद मिटा दीन- धनिक धर्म- पंथ में, करें शुकराना

Wednesday 1 May 2019

कर्णधार

देश के नव निर्माण का
मजदूर ही है कर्णधार
बहाता नित्य ही वो स्वेद
बदले में मिलते न उपहार
बने न विकास के हकदार ।

सिर पर कफन बाँधकर
दो जून की रोटी खातिर
जान पर रोज ही खेलता
दो चार रूपये कमाकर
मजदूर परिवार पालता ।

बंजर भूमि में सोना उगाता
श्रमजीवी मानते न कभी हार
खेत फले फूले देख,खिल जाता
पर मनों टन अन्न उजाकर
अपना क्षुधा न मिटा पाता  ।

निर्जन वन को बसाकर
चमन बना देता मजदूर  ।
सागर के दिशा बदलता,
दुर्गम पथ सुगम बनाता
परिश्रम से मुँह न मोड़ता ।

उँची बहुमंजिली मिनार
बनाके, सोता फूटपाथ पर 
सुंदर जहां बनाके दुख सहता ।
जीवन की विसंगतियों को
सह लेता है वो मुस्कुराकर ।

मिले हर श्रमजीवी को
परिश्रम का उचित मूल्य,
अन्न वस्त्र व सिर पे छत हो
तरसे न वो खुशियों को
हर दिन मजदूर दिवस हो ..।