Sunday 5 May 2019

खामोशी

वेदना की बदलियों ने
आज आकाश घेरा
खामोशियों का पहरा
दिल पर बिठा दिया
जीवन उपहास बन गया
दिए जो दंश अपनों ने
वो सह नहीं पा रहा
पीर से उर सिसक रहा  ।

अपने पन का ढ़ोग
रचाते हैं सभी लोग
झूठी दया सहानुभूति
दिखाते हर एक इन्सान
झूठे स्वांग में सब फँस जाते
आज दिलों के रिश्ते
स्वार्थ में लिपटे होते  ।

अब दिल का लगाना
खेल ही तो हो गया
किसी को कुछ कहना
भाता नहीं किसी से बाँटना
खामोशी की चादर ओढ़ कर
सबसे छुप जाना पात्र,
यही है एक मात्र अस्त्र ।

दूसरे के दर्द का मखौल
सभी ही उड़ाया करते हैं
फिर किसी से कहकर
हँसी का पात्र बनना
किसको होगा स्वीकार
जब अपने ही खंजर
भोंक डाले वक्ष पर
फिर धीर कौन बंधाए
नैना फिर क्यों न नीर बहाए.. ?


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