Wednesday 12 June 2019

नेह की छतरी

नेह की छतरी तान अचल नील गगन
सिन्दुरी उषा भी सकुचाई करे नमन

सदियों से अडिग उन्मुक्त गगन
अपने सुख दुख सारे कर दफन
प्रकृति के उत्थान पतन में खड़ा
अनगिनत राज मन में कर वरण
सिन्दुरी उषा भी सकुचाई....

सप्तरथ आरूढ़ रवि उतरे गगन
आलोकित अभ्र में पंछि विचरण
गूंजे ऋचा भोर का हुआ आगमन
ऋषी मुनि कर रहे कर जोर वंदन
नेह के छतरी तान...

चमके वितान पे असंख्य तारागण
लगे हजारों हीरे मोती हो उनपे जड़ा
इन्द्र अप्सरा के संग निकले विचरण
शुभ्र चांदनी में करे शशि निशा मिलन
नेह की छतरी तान ....

दे स्वर्ण रूप मार्तण्ड के किरण वाण
केशव के पिताम्बर सा रंग गया  मन
सुघर सांझ जब आती मन हुआ चन्दन
उतरा अंबर धरा का करने को आलंबन
सिन्दुरी उषा भी सकुचाई...

श्यामल रूप सलोना लागे छाए घन
शिखर के शीश नेह से चूमे आसमान
सप्तरंगी इन्द्रधनुष छाया लगे सुहावन
राग अनुराग गूँजे चहूँ दिस बरसे बूंदन

नेह की छतरी तान अचल नील गगन
सिन्दुरी उषा भी सकुचाई करे नमन

 

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