Sunday 2 June 2019

अनमोल सीख

आसमां मद में चूर ताने सीना
दिए जो प्रकृति नौ ग्रह नगीना ।
रवि रश्मि सजाते हैं मेरे अंगना
मेरेअस्तित्व के आगे बहे पसीना   

सारे संसार का छतरी कहलाता
नीले बादल मेरा रूप निखराता
सूरज चंदा तारे रहते मेरी पनाह में
इन्द्रधनुष के रंग मन को लुभाता

देखकर पंछियों के जोड़े उड़ते
आसमान के हृदय बहु पिघलते
इतने निधियों को पाके वो उदास
बरबस हीं उनके दृग से बूंदे बरसते

बिन साथी जिया न जाता किसी से
रोज शाम मिलने चले आता धरा से
चकित कर जाता आसमां प्रकृति को
क्षितिज मुग्ध मिलन के बिहंगम दृश्यों से ..।

भ्रम ही सही मिले दो पल की खुशी
बादल की अटखेली लगे सबसे हँसी
घन गर्जन से आगोश में सहमी निशा
चमकते हैं वितान पर रवि और शशि

तरसी धरणी बिन नीर देखे कातर दृग से
भेज दे बादल को बूँदें लेकर जल्दी से
अंतहीन आकाश में जड़ चेतन समाया
पाके ऊँचाई दिग्भ्रमित न हो मनु कर्म से

जीवन की अनमोल सीख मिले व्योम से

No comments:

Post a Comment