Thursday 20 June 2019

मैं हूँ चिकित्सक बबूल

बिन नीर भी उगूँ, जमीं, चाहे जैसी होय
 सुनसान में अचल मैं , हर्ष न विस्मय होय

रेगिस्तान की गर्मी ,,जला दे भू समूल
देकर छाँव राहत दूँ ,जब हो मनु व्याकूल

जीवन  भरपूर मुझमें,,खड़ा हूँ नदी तीर
 अंग अंग कंटक पड़ा,, हर लूँ सबका पीर

मैं बबूल हूँ चिकत्सक , हूँ औषधि का खान
हरियाली विहिन मरु में,पशु पक्षियों का जान

भरे जख्म गहरे लगा,, लो पत्ती का चूर्ण
 लेप करे काले घने ,, बने केश परिपूर्ण
 
नित्य लेप प्रयोग करें ,, गंजापन ठीक होय
 डाल से दातुन करो ,, रोग मुक्त दंत होय

परहित में जी रहा हूँ,,सहकर कितना शूल
उपयोगी अंग अंग, व्यंग,, करके न करो भूल

फल के चूर्ण सेवन से, हड्डी भी जुड जाय
गोंद के घोल से आँत, जख्म ठीक हो जाय

 बबूल छाल उबाल लो ,, एग्जीमा हो ठीक
फूल पके सरसोंउ तेल ,, कान दर्द हो ठीक

खड़ा रहूँ मैं मेड़ पर ,,,कब मानूँ मैं हार
भूखे पशुओं का सदा,,, बनता हूँ आहार

बाज न आए लोग कहे ,,, बबूल वृक्ष है भूत
कुछ कहे श्री हरि बसते ,,,तभी गुण है अकूत

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