Thursday 31 October 2019

खंडित विश्वास

रुला गया क्यों बेवफा,क्या था मेरा दोष?
नीड़ प्यार का जल गया,रिक्त प्रेम का कोष।

दूध सपोले को पिला, किया सदा विश्वास 
डंक मुझे अब मारता,शेष न कोई आस ।

टूटे रिश्ते काँच से,भरी हृदय में आग।
मुखड़ा उसका चाँद सा,लेकिनउसमें दाग 

जीना क्यों मुश्किल हुआ, करता रहा  प्रहार 
मात-पिता उसके लिए,लगते असह्य भार 

आँधी क्यो बनता पिया, उड़ा दिया क्यों नीड़?
दो राहों पर मै खड़ी,देख रही जग भीड़ ।।

रीत रहा घट हृदय का, छलता क्यों है  प्यार।
बीज प्रपंची बो गया, वोछलियाअवतार ।

नही धार तलवार पर,चलना है आसान ।
करे कैद जज्बात को, वो पत्थर इन्सान ।

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