विधा - गीत
ख्वाहिशें ली अंगड़ाईयाँ, जुगनू बन चमक रहे
आये तारों की बाराती , क्यों गुमसुम खड़े गुणे ।
आज मन पंछी सा उड़े हैं ,तुमको ही ढूंढ रहे
देख क्षितिज में लाली छायी, प्रियतम इन्तजार में ।
फिर से मृगमरीचिका देखो, मरू में भरमा रहे
नैन आस की बदली आई, सुहाने दिन ढल रहे।
ख्वाहिशों की....
ये कैसी उर को प्यास लगी , बेबस पाँव जमे हैं
कौंध रही यादों की बिजली , जड़वत हुए ठगे हैं ।
पूनम की रात बैलगाड़ी, लिये सैर को निकले
थँसा वक्त का पहिया ज्यूँ ही, अब तो दम निकल रहे।
ख्वाहिशों .....
दूर चले आए हम कितने , छुट गए सभी अपने
तन्हा सफर कटे अब कैसे, पूच्छल तारे सपने ।
छोड़ जगत को जो जाते हैं,बने प्रकृति के गहने
लता वृन्द में खोज रहे हैं , वृन्दावन भटक रहे ।
ख्वाहिशों .....
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