विधा- रोला
चोटी ढकती बर्फ , श्वेत धवल पर्वत दिखे
देवदार औ चीड़ ,शीश किए ऊँचा दिखे ।।
छू लो बादल हाथ, रूई सा उजले दिखे ।
सुन्दर नैनाभिराम, दृश्य पहाड़ों के दिखे ।।
लौटे पंछी नीड़ , वे मधुर मिलन को गेह ।
दो दिल खोया प्यार, भर रहे नैन में नेह।।
आयी सर्दी द्वार, बिखर हरशृगांर गए।
नया नया अहसास, मचल हृदय फिर भी गए ।।
आनंदित हर पोर, रोम रोम छाया नशा ।
आये साजन साथ,आज झूमती हर दिशा
हर्षित मानव मुग्ध , रश्मि छिटकती ओस है ।
खिले पुष्प सब बाग , मुग्ध नैन मदहोश है।।
सुरभित कानन मुग्ध,चूस अलि मकरंद रहे।
सुप्त हिया अनुराग, नैन झूम प्रीतम रहे ।।
मुक्त हुआ तन तप्त , गात शीतल, लिहाफ में ।
भींग रहा मन प्रीत ,बँध प्रीतम की बाँह में ।।
उषा झा
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