Friday 1 November 2019

कुरीति


विधा- गीत 16/ 14 ( लावणी छंद)
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मुखड़ा

क्यों कुरीति की बलि बेदी पर
चढ़ती नारी हर युग में ?
किस्मत की मारी को सब ही ,ठोकर मारे जग में ।

अंतरा

नियति ने मझधार जब छोड़ा,,नही मौन दृग, नीर बहा ।
पूत संग वह रही अकेली ,भरी जवानी बनी तन्हा।।
बिखर कामना गई ,रेत सम,भरी वेदना जीवन में 
मान अभागिनी को दे कौन?, पीर जले अंतस् मन में ।।
क्यो कुरीति की बलिबेदी...

जीवन में बिन रंग उम्मीद ,,करके कैसे ज्योति जले ?
डोर नेह की, थामे जीती ,दिल में, सुत के ख्वाब पले।।
बना हृदय पाषाण पीर से,,अटल-कर्तव्य पथ पर थी ।
पुत्र संग माँ भी खुश रहती,आंचल में नेह भरी थी ।।
हुई सफल तप, माँ बलिहारी, सुत खुश नूतन भविष्य में 
क्यो कुरीति के बलि बेदी....

अबला पुलक रही बेटे को , शुभ निहारन की घड़ी है ।
घोड़ी चढ़ कर पुत्र पुकारे, आ माँ तू कहाँ छुपी है?
नयनों का टूटा बाँध तभी, चाल चली विधि ने गहरी ।।
लगाती नजर टीका सतु को, उस माँ की ही नैन भरी ।
सहे वैधव्य बुत हतभागी , सुन ग्रहण! डूबी दर्द में ।
क्यो कुरीति के बलि बेदी....

देर हुई क्यों सुत आशंकित , घर में माँ को खोज रहा ।
करे तिलक अपशगुनी कैसे , किसी ने माँ को क्या कहा ।
संवेदन हीन बने परिजन ,, हृदय पूत का व्यथित हुआ ।
धूँध छँटा सबके मन से जब, सुत सब पर नाराज हुआ ।
माँ तुम से पहचान शगुन की ,,खुशी तुम्हीं से जीवन में ।।
क्यो कुरीति पर वार....

मन गढंत है बात अशुभ शुभ, बंदिश नहीं मुझे सहनी
थोप मनमर्जियाँ फिजूल की, नारी को करते छलनी
करदो कुप्रथा का बहिष्कार, है जिम्मेदारी सबकी ।
माता सी कोई उपकारी , नहीं हुई है इस जग की ।

क्यो कुरीति के बलि बेदी क्यों कर,,चढ़ती नारी हर युग में ।
किस्मत की मारी को ठोकर, मारे हर कोई जग में ।।

उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

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