विधा - रोला
दस्तक सर्दी द्वार, आने वाली शीत है ।
दो बूँदें प्रेम जब , भावे मन को मीत है ।।
जगे हिया अहसास ,याद कहानी हो रही ।
झरते हरशृंगार , प्रीत दिवानी हो रही ।।
तुझे खोजते नैन, बसी है मूरत मन में ।
है निशान मौजूद ,बसती आस नयनन में ।
लायी बहार प्रीत , मौसम उमंग भरा है
आया मन का मीत,हुआ दिलआज हरा है
खिलते जब मन पुष्प ,लगते पग भी थिरकने।
रंग भरे मधुमास ,लगते दिल भी पिघलने।
हर्षित है खग वृन्द , भँवरे बाग में घूमे ।
कोकिल है आनन्द, मेरा पिया मन चूमे ।
जग में प्रेम अनूप,जीवन खुशियाँ मनाता
जपे सभी दिन रैन, रात दिन खुशियाँ लाता ।।
चखी नेह की बूँद ,पुलकित मन आंगन हुआ ।
बरसे प्रीत फुहार, कण कण रोमांचित हुआ ।।
रहे अधूरे ख्वाब , चली दो सिरे जोड़ने ।
चुनने शिउली फूल , चली फिर तुम्हें ढूँढने
मिलने का विश्वास ,नही टूटा है अब भी
मत मृगतृष्णा पाल,जानता इसको जग भी ।
उषा झा
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