Wednesday 22 January 2020

पिया बिन तरसे नैन

विधा- मदिरा सवैया 
211/ 8  अंत गुरू( 2 )

211  211 211 211 211  211 211   211 2
झूम रहा ब्रज रास रचा वत कृष्ण बजावत है मुरली
नाच रहे सुन के धुन,  प्रेम रिझावत अद्भुत है मुरली 
खो कर होश सभी घर द्वार बिसार गई दिल है मुरली
आँचल है ढलका उलझे लट गोपन की बल है मुरली

माधव क्यों हिय नित्य जलावत गोपिन नीर बहावत है
बेबस प्रेम किया, अखियाँ तरसे सब राह निहारत है 
धेनु सखा सब भूल गये, छलिया ब्रजभूमि बुलावत है
देख दशा तुम जी रही दिन वो गिन ,श्याम जलावत है 

आस लिये कब से दिल सोच रहा कब प्रीतम को परखू
योजन कोश बसे जब मोर पिया उर में उनको निरखूँ
जीवन बोझ लगे अब पीर भरे उर, बेबस बैन लिखूँ
सावन में घन ज्यूँ बरसे मचले मन चातक नैन दिखूँ

उत्तराखंड देहरादून

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