Sunday 16 February 2020

प्रणय मिलन


विधा - गीतिका    छंद
2122   2122   2122   212
लाज की चुनरी नहीं अब मैं हटाऊँ औ पिया ।
खुल न जाए भेद, पट से मुख छुपाऊँ औ पिया ।।

छेड़ जाते  तार उर के   दो  नयन  तेरे  सजन ।
स्वप्न नित नव नव सजाती क्या बताऊँ औ पिया।।

जुल्फ जब मुख चूमता एक टक फिर देखती ।
प्रीत मुखरित हो रही कैसे ,जताऊँ औ पिया ।।

तोड़ दो तट बंध  सारे  चाह दिल  में  है  यही ।
वार दूँ तन मन, नहीं तुमको सताऊँ औ पिया ।

चेतना भी लुप्त मन की गात अब निस्तेज है ।
कामना दिल में मिलन की तन सजाऊँ औ पिया ।

प्रेम से यह जग बना है देव भी   हारे   हृदय ।
चिर मिलन बिन हम अधूरे क्या सुनाऊँ औ पिया।।

मद भरी यह शाम आई गात पुलकित हो रहा ।
खोल मन के द्वार सिमटी सी लजाऊँ औ पिया ।

होश क्यों गुम हो रहा है अधखुले मेरे पलक ।
श्याम पर राधा दिवानी दिल लुटाऊँ औ पिया ।।

प्रीति की ये रीति से गढ़ नव जगत आधार तुम ।
बाँध लो भुज बंध में सज धज लुभाऊँ औ पिया ।।

प्रेम तब परिपूर्ण होता जब मिलन की बात हो।
रागिनी मृदु बैन निशि दिन फिर सुनाऊँ औ पिया।

प्रीत तो उपहार, जीवन को मिला जग जीत लो ।
आस से पुष्पित हृदय, कितना दिखाऊँ औ पिया ।।

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मैं उषा झा देहरादून 

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