विधा - गीतिका छंद
2122 2122 2122 212
लाज की चुनरी नहीं अब मैं हटाऊँ औ पिया ।
खुल न जाए भेद, पट से मुख छुपाऊँ औ पिया ।।
छेड़ जाते तार उर के दो नयन तेरे सजन ।
स्वप्न नित नव नव सजाती क्या बताऊँ औ पिया।।
जुल्फ जब मुख चूमता एक टक फिर देखती ।
प्रीत मुखरित हो रही कैसे ,जताऊँ औ पिया ।।
तोड़ दो तट बंध सारे चाह दिल में है यही ।
वार दूँ तन मन, नहीं तुमको सताऊँ औ पिया ।
चेतना भी लुप्त मन की गात अब निस्तेज है ।
कामना दिल में मिलन की तन सजाऊँ औ पिया ।
प्रेम से यह जग बना है देव भी हारे हृदय ।
चिर मिलन बिन हम अधूरे क्या सुनाऊँ औ पिया।।
मद भरी यह शाम आई गात पुलकित हो रहा ।
खोल मन के द्वार सिमटी सी लजाऊँ औ पिया ।
होश क्यों गुम हो रहा है अधखुले मेरे पलक ।
श्याम पर राधा दिवानी दिल लुटाऊँ औ पिया ।।
प्रीति की ये रीति से गढ़ नव जगत आधार तुम ।
बाँध लो भुज बंध में सज धज लुभाऊँ औ पिया ।।
प्रेम तब परिपूर्ण होता जब मिलन की बात हो।
रागिनी मृदु बैन निशि दिन फिर सुनाऊँ औ पिया।
प्रीत तो उपहार, जीवन को मिला जग जीत लो ।
आस से पुष्पित हृदय, कितना दिखाऊँ औ पिया ।।
___________________________
मैं उषा झा देहरादून
No comments:
Post a Comment