Thursday 2 July 2020

घुँघरूँ की पुकार

विधा - कबीर छंद(सरसी छंद)
16/ 11अंत 21

मन्दिर मन्दिर महफ़िल सजती,घुंघुरु की झंकार।
मधुर मधुर धुन पर आ नचती, पीर परायी सार।

घुँघरू गीतों में रची बसी , करे भक्त रस पान ।।
अमिय धार नित बहे हृदय में, रास रंग की शान ।
अम्बे के दरबार में सजी, शुचित भजन शृंगार ।
मधुर मधुर धुन पर उर नचते, पीर परायी सार ।।

कला पुजारी पग बाँधे, प्रमुदित उर मृदु तान ।।
अप्सरा पग बाँध छीने , देवों के मन प्राण ।
मोहित प्रियतम के दिल धड़के,प्रीत जगत के सार।।
मंदिर मंदिर महफिल सजती, घुँघरू की झंकार।।

देवालय से विद्यालय, बढा गई सम्मान ।
सियासी गलियों की रही , घुँघरू सदैव जान ।।
चाह घृणित लोगों की बस वह , पहुँच गई बाजार।
मंदिर मंदिर महफिल  ....

नृत्यांगना के नृत्य पर , सजी सुरीली नूर ।
पग बँधी वाह पर नहीं थकी ,घुँघरू जग मशहूर ।।
चाह ईश को अर्पण बेड़ी से , मुक्ति ही परम सार ।।
मंदिर महफिल .....

कोठे की महफिल में सज , बिक गई बारंबार ।
हुस्न के वाह से आहत, बहते नैन से धार ।।
कच्ची कली के पग बँधी , हुए द्रवित उर खार ।।
मधुर मधुर धुन पर आ नचती, पीर पराई सार।

मंदिर मंदिर महफिल सजती, घुँघरू की झंकार।

उषा झा देहरादून
सादर समीक्षार्थ 🌹🌹

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