Saturday 4 July 2020

प्रहरी बने तपस्वी

 विधा- वीर छंद ( आल्हा छंद) आधारित गीत

नित जवान सरहद पर मरते , उबल रहा भारत का तंत ।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत ।

आँधी तूफानों से लड़ते , कहाँ मानते  सैनिक हार ।
भीषण सर्दी में भी प्रहरी , सदा करें दुष्टों पर वार।।
विपदा माँ पर जब भी आई, किए वीर न्योछावर जान।
फर्ज  निभाते सपूत सच्चे, बन लीलाधर रखते मान ।।
मातु- पिता के लाल कभी वह,किसी सुहागन के हैं कंत।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत ।

कितने ही बलिदान दिए हैं,हुए तभी हम सब आजाद।
नियत बुरी है गद्दारों की,देखो करे  देश बर्बाद  ।।
घर गोली बारूद छुपाते,कलुष हृदय भरते मति भ्रष्ट।
सरहद पर  शिकार नित सैनिक,खोते हीरा हिय बहु कष्ट।
त्याग गेह वह बनते तपसी , सैनिक होते सच्चे संत ।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो, सुनो भारती करना अंत। 
प्रतिपल प्रचंड़ धूप-शीत में ,अडिग वीर के माथ न रेख ।
चाह देश हित ही सर्वोपरि, चले एकला राही  देख ।।
आन बचाने भारत माँ की,  ढूँढ लेहिं  दुश्मन पाताल ।
आँख उठाए जब जब बैरी,चीर देहिं बन कर ये काल ।
 हर संकट को दूर भगाते , बन संकट मोचक हनुमन्त ।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत।।
नित जवान सरहद पर मरते , उबल रहा भारत का तंत ।।

उषा झा देहरादून

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