Friday 31 July 2020

ठूँठ जीवन सहर नहीं आती

2122   1212  112/22
काफिया - अर
रदीफ - नहीं आती 

नींद आठो पहर नहीं आती ।
याद तुझको मगर नहीं आती ।।

बावरा मन सजन, बना जोगन ।
दूर दिलबर, खबर नहीं आती  ।।

रोज  आँगन  बुहारती  हूँ मैं ।   
प्रीत की धूप दर नहीं आती   ।।                                                           
चाँद रूठा मिरा, जहाँ सूना ।
चाँदनी की लहर नहीं आती ।।

 नैन प्यासे तरस रहे कब से ।
 प्रीत मेहर नज़र नहीं आती ।।

 बूँद सावन की बरसती देखो
 भूल कर इस डगर नहीं आती ।।

धार अविरल बही युगों से  हूँ ।
तुम तलक पर भँवर नहीं आती।।

प्रेम दरिया उतर गई  प्रियतम ।
पार कैसे करूँ नहर नहीं आती ।।

जख्म पीती उषा विरह की है।
ठूँठ जीवन सहर नहीं आती  ।

उषा  झा देहरादून 
सादर समीक्षार्थ 🌹🌹

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