Monday 24 May 2021

नमन सृष्टि की निर्मात्री को

🔹 *विधान गोपी छंद*🔹
🍙 यह मात्रिक छन्द है।
🍙 चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
🍙 प्रति चरण १५ मात्रा।
🍙 आदि में त्रिकल, अन्त गुरु /वाचिक
🍙 चरणान्त गुरु गुरु श्रेष्ठ
           
3+ 2 3 + 3 4
नेह शुचि शीतल है माता ।
रूप निर्मल मन को भाता ।।

गर्भ में नव अंकुर बोती ।
नींद गहरी माँ कब सोती ?
देख सुत मुख सुध बुध खोती ।।
भूल अस्तित्व सुखी होती ।
देव महिमा माँ की गाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

दौड़ ती सुन क्रदंन मेरा ।
प्रथम तुमको बंदन मेरा ।।
हृदय माँ चंदन है तेरा ।
मोद आँचल मातु बसेरा ।।
छाँव में सुत हर सुख पाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

पुत्र माँ पितु कहना मानो ।
मोल ममता जग पहचानो ।।
जिन्दगी जो नित्य सँवारी ।।
जिन्दगी उसकी अँधियारी ।
आस टूटी भाग्य विधाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।

कर्म संतान नहीं सच्चे ।
फेर लेते मुख क्यों बच्चे ?
नीर नित अखियाँ भींगोती ।
सृष्टि की निर्मात्री रोती ।।
तीर उर पर पूत चलाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

कुक्षि में जग को पनपाती ।
कर्म से माँ सृष्टि सजाती ।।
देव की माँ बन मुस्काती ।
कोख में है अक्षुण थाती ।
पीर पर दृग कोर भिगाता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

प्रो उषा झा रेणु

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