Thursday 27 May 2021

सतरंगी सपने

विधा -छंद मुक्त
18/13
 दिवस पखेरू उड़ने को आतुर , देख मैं तो वहीं खड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लड़ी ।।

राग अनुराग हिय, प्रीत नयन में, सतरंगी सपने सजे ।
पोर पोर उमंग, लगी बहकने, मुदित निशि पियु देख लजे ।
चढा झील से नैनों का जादू ,धड़कन फिर बढ़ने लगी ।
छोड़ किताबें सजन पथ हेरती ,प्रेम अगन जलने लगी ।
तुम कहते पढ लिख बालिके चढो,उत्तुंग गिरि थाम छड़ी।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लडी।

दिल का लगाना बड़ी बात नहीं, थाम कर जीवन भर ले,
हर प्रेमी को ये सामर्थ्य नहीं, शत प्रीत के पुष्प खिले ।
अधर मुस्कान मृदु सजन सजाये,सोच कर नयन गुलाबी ,
नैनों में वो मद भरी ख्वाहिशें, मुदित उर हुस्न शबाबी।
चाहत के रंग भरे जो उर में , लगी प्रीत की मृदु झड़ी ।।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।

शनैः शनैः गुजर गए वक्त मृदुल,शुचित प्रेम हमारा है ।
देख मेंहदी कर में गाढ़ी है , सत्य प्यार तुम्हारा है।
स्मित स्नेहिल स्पर्श मुग्ध रोम रोम, सुरभित गात मेरा है।
युग युग से मिलने आती धरती, मन में आस तेरा है।
ख्वाबों की ताबीर लिए सूनी , सेज गुमसुम आज पड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून

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