Sunday 9 May 2021

सीता हरण

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धुन जिन्दगी की लड़ी

भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती।
दुष्ट लंकेश क्यों हर लिए, जिन्दगी अब नहीं मोहती ।

बिन पिया के नहीं जी लगे,अब विरह रैन कैसे कटे।
दिन महीने हुए खत्म पिय, राम के नाम नित उर रटे ।।
स्वप्न में आह मनवा भरे, रागिनी भी तृखा घोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती ।।

खो गए वो मिलन के दिवस कब कमल नैन दर्शनकरे।
चाँद से बात कितनी करें चाँदनी भी नहीं दुख हरे ।।
बस तड़पती विरहणी नहीं मुख सिया शूल से खोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

पुष्प के वाटिका में बहे नैन मन धीर सीता नहीं ।
पति विरह दंड भारी मिले आज संदेश मीता सही।।
कौन विधि राम लंका पधारे विरह दंश बस भोगती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

घुल रही पीर से बावरी, ओह क्या काल के खेल है ?
कौन निर्जन विटप दे सहारा नहीं, आस उर ढेल है ?
रात काली डराती नहीं नींद दृग, दुख किसे बोलती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

शूल उर में सदा राह प्रिय राम के नित निहारे सिया ।
धीर भी हो गये खत्म बस सोचती क्यों भुलाये पिया।
वाटिका रो रही मातु, हनुमान दी अंगुठी राम की ।
राम के दूत हनुमंत आए हरे पीर माँ जानकी ।।

सोच प्रभु दूत सीता बँधी आस, पिय याद में डोलती ।
भाग्य क्यो बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून

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