राधा विकल, मन हो चली।
तिल तिल विरह, में वो जली।।
चितचोर ले, कर दिल गया ।
धेनू सखा, बिसरा गया ।।
टूटे सभी सपने सखा ।
छलिया छुपे नेहा दिखा।।
सूनी हुई गोकुल की गली।
राधा विकल मन हो चली ।
कान्हा छुपा, मथुरा नगर ।
दिल को चुरा, कर बेखबर ।।
प्रीतम कहीं , बिसरा गए ।
नेहा लगा, बहला गए ।।
मुरझा गई मन की कली ।
राधा विकल मन हो चली ।
छलिया खुशी,भी ले गया ।
घनश्याम क्यों रूला गया ।।
माधव कहाँ, किस का हुआ ।
सहना विरह, भारी हुआ ।।
आँखिया लड़ाई क्यों भली ?
राधा विकल मन हो चली ।।
कैसे जिए अब सांवरी ।
कितनी दुखी , है बावरी ।।
बंसी बजा ,अब मोहना ।
तुम क्यों भुला, हरि बोलना।।
केशव छले गोकुल लली ।
राधा विकल मन हो चली ।।
जीवन व्यर्थ, अब हो गए ।
मन संग वो ,लेकर गए ।।
दरशन नहीं, देते मुझे ।
तड़पा रहे , गिरधर मेरे ।।
सत प्रीत में पीड़ा मिली ।
राधा विकल मन हो चली ।
ब्रजभूमि भी, सूना पड़ा ।
मायूस सब, कोई खड़ा ।
माधव हृदय , क्यों न पढ़ा ।
छल दोष सब, ने ही मढा ।।
बस दंश पाई मनचली ।।
राथा विकल मन हो चली ।।
बेकार मन, माया में पड़ा ।
पट्टी खुली , दृग था पड़ा ।।
जा उद्धव अब ,तू ना सिखा।
झूठी नहीं ,आशा दिखा ।।
चाहत सदा सबको छली ।
राधा विकल मन हो चली ।।
उषा झा
Wednesday 30 June 2021
Sunday 27 June 2021
नैनन सजना के सपने
नैनों में तेरे ही सपने , दे दी दिल तुमको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना, तुम से दूर नहीं रहना ।।
दिवस खास देखो आये हैं, प्रणय निवेदन मैं करती ।
चलें दूर हो जहाँ सितारे,तुम से ही धड़कन चलती।।
नीले अंबर के नीचे मन,भर बातें करनी तुमसे ।
भार्या सजन बनी हूँ तेरी , जाने कितने युग युग से ।।
सजन निभाना रीति प्रीति की, नहीं किसी से तुम डरना ।
जीवन डगर संग ही चलना, तुम से दूर नहीं रहना ।।
दिल के कोरे कागज पर अंकित, नाम वही सुमीत से ।
तुम्हें देखते ही दिल धड़का, तुम जुड़े हुए अतीत से ।
सपने में एक सौम्य गंधर्व , पुष्पक विमान पर आए ।
अनुबंध हमारा बरसों का , तभी एक दूजे को पाए।।
मिले सनम गम या खुशी हमें,अब तो मिलकर है सहना।
जीवन डगर संग ही चलना , तुम से दूर नहीं रहना ।।
सौभाग्य फले फूले निशि दिन , स्वार्थ प्रीत से परे रहे ।
जग में अपना प्यार अमर हो , सत्य प्रेम बस टिके रहे ।
इतिहास रचे हम दीवाने , प्रेम अमित सब पढा करे ।
कायनात में रुह की दांस्ता,एक इबारत लिखा करे ।
मन मीत एक विनती सुन लो , भूल माफ सदैव करना ।
नैनों में तेरे ही सपने ,दे दी दिल तुझको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना,तुमसे दूर नहीं रहना ।।
_____________________________________
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून
Tuesday 22 June 2021
सरदार वल्लभ भाई पटेल
वल्लभ भाई पटेल सचमुच , जन जन के उर बसते हैं
साहस के पुतले जन्म लिए, गर्वित भारत सुत पे है।
धन्य गुजरात अंचल नाडियाड, लौह पुरुष अवतरित हुए ।
मातु लाडबा पितु झवेर के , महामानव संतति हुए।
वर्ष अठारह सौ पछत्तर व,अक्टूबर इकत्तीस गाये।
दिवस गौरवान्वित आज तलक, देखो खुद पर इतराए।।
आज तलक माला उनके ही , नाम के सभी जपते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल.....
जन्म हुआ भारत के भू पर , कर्मठ सुत अति उत्साही ।
दृढनिश्चयी सरदार पटेल , अदम्य केसरी साहसी ।।
देश भक्त वल्लभ भाई के , नीति अनोखी चर्चित है ।
बिखरी रियासतें जोड दिए ,हर भारतीय हर्षित है ।।
नीति नव राष्ट्र खडा इसलिए, नतमस्तक रहते हैं ।।
वल्लभ भाई पटेल.....।
सत्याग्रह आंदोलन में वो, गाँधी संग पग बढाए ।
स्वतंत्रता के दीप जलाए , वो लौह पुरूष कहलाए।।
वुद्धि विलक्षण के कारण ही, गृह मंत्री बने देश के।
चाल कुटनीति जब चली चित्त , हुए पेशवा भारत के।।
दृढ संकंल्प फौलादी जिगर , को शूर वीर कहते हैं।
वल्लभ भाई पटेल ...
कुरीति अन्यायों पर सदैव, कुठाराघात पटेल की ।
लड़े दीन दुखियों के वास्ते ,उर में फिकर सदा सबकी।।
गौरव गान कभी पटेल की , कम नहीं हिन्द में होगी ।
ऐसे वीर सेनानी पाकर , सबकी माता खुश होगी ।।
ऐसे महापुरुष युग युग तक, अमर कर्म से रहते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल ....
लिए क्रांति मशाल पटेल तब , दिखाए मग बन प्रणेता।
शौर्य कीर्ति फैलाए देश के , ऐसे धीरवान नेता ।।
राष्ट्र हीत सर्वोपरी यही , आदर्श मार्ग दिखलाए ।
सदचरित्र सत्कर्मो से यश, पताखा जग में लहराए।।
उस शूर वीर को भारतीय ,नमन हृदय से करते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल सचमुच, जन जन के उर बसते हैं।
*उषा की कलम से*
देहरादून उत्तराखंड
साहस के पुतले जन्म लिए, गर्वित भारत सुत पे है।
धन्य गुजरात अंचल नाडियाड, लौह पुरुष अवतरित हुए ।
मातु लाडबा पितु झवेर के , महामानव संतति हुए।
वर्ष अठारह सौ पछत्तर व,अक्टूबर इकत्तीस गाये।
दिवस गौरवान्वित आज तलक, देखो खुद पर इतराए।।
आज तलक माला उनके ही , नाम के सभी जपते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल.....
जन्म हुआ भारत के भू पर , कर्मठ सुत अति उत्साही ।
दृढनिश्चयी सरदार पटेल , अदम्य केसरी साहसी ।।
देश भक्त वल्लभ भाई के , नीति अनोखी चर्चित है ।
बिखरी रियासतें जोड दिए ,हर भारतीय हर्षित है ।।
नीति नव राष्ट्र खडा इसलिए, नतमस्तक रहते हैं ।।
वल्लभ भाई पटेल.....।
सत्याग्रह आंदोलन में वो, गाँधी संग पग बढाए ।
स्वतंत्रता के दीप जलाए , वो लौह पुरूष कहलाए।।
वुद्धि विलक्षण के कारण ही, गृह मंत्री बने देश के।
चाल कुटनीति जब चली चित्त , हुए पेशवा भारत के।।
दृढ संकंल्प फौलादी जिगर , को शूर वीर कहते हैं।
वल्लभ भाई पटेल ...
कुरीति अन्यायों पर सदैव, कुठाराघात पटेल की ।
लड़े दीन दुखियों के वास्ते ,उर में फिकर सदा सबकी।।
गौरव गान कभी पटेल की , कम नहीं हिन्द में होगी ।
ऐसे वीर सेनानी पाकर , सबकी माता खुश होगी ।।
ऐसे महापुरुष युग युग तक, अमर कर्म से रहते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल ....
लिए क्रांति मशाल पटेल तब , दिखाए मग बन प्रणेता।
शौर्य कीर्ति फैलाए देश के , ऐसे धीरवान नेता ।।
राष्ट्र हीत सर्वोपरी यही , आदर्श मार्ग दिखलाए ।
सदचरित्र सत्कर्मो से यश, पताखा जग में लहराए।।
उस शूर वीर को भारतीय ,नमन हृदय से करते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल सचमुच, जन जन के उर बसते हैं।
*उषा की कलम से*
देहरादून उत्तराखंड
बीता यौवन
इस यौवन की यही कहानी
मन में आग नयन में पानी ।।
प्रणय भाव में नयन निमज्जित
लगता सब कुछ हुआ विसर्जित
जीवन में ज्यूँ मौज रवानी
इस यौवन की यही कहानी
मन में आग नयन में ...।।
भीगे मन में प्रेम भरा है ।
मानस उपवन हरा भरा है ।
प्रिय की है यह चूनर धानी ।
मन में आग नयन में पानी ।।
जो है दूर याद आया है ।
इन्द्र धनुष मन में छाया है ।
साँस साँस में प्रिय की वाणी ।
इस यौवन की यही कहानी ।।
शलभ जले जब दीपक जलता ।
प्रेम अग्नि से जीवन मिलता ।
प्रणय याण में घूमूँ क्षण क्षण ।
अर्पित प्रिय को मेरा कण कण ।
मैं भिक्षुक सी प्रिय है दानी ।
इस यौवन की यही कहानी ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून
Saturday 12 June 2021
आस सजे श्रमजीवी के
विधा- ताटंक छंद
16 / 14 अंत तीन गुरु
आशाओं का संदेश लिए, नव प्रभात जब आएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी, सौगात शुभ्र लाएगा ।।
उषा काल धरणीधर देखो,मुदित खड़े वह रेतों में।
साँझ सवेरे धूल सने तन, श्वेद बहाते खेतों में ।।
करे परिश्रम सच हो सपने, नित गगन निहारे वो ।
दो बूँद बरस जा री मेघा ,नित भविष्य सँवारे वो ।।
खेतो में फसले लद जाए ,हृदय कमल खिल जाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।
कृषक दुखी है, व्यापारी, स्वार्थी भाव गिराता है ।
झूठे सपने भरे नयन में,क्यों मन को भरमाता है।।
सेठ, सरकार जब छल करता,श्रमजीवी बस रोता है ।
गुदड़ी सीकर वस्त्र पहनता,बीज खुशी का बोता है ।।
मोल परिश्रम का मिल जाए, गीत खुशी के गाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।
पूँजी नहीं यकीं हाथों पर , फिर भी खेत लहलहाते ।
अपना पीठ जलाते हलधर , मरु में सोना उपजाते ।।
फल फूल लदे हैं पेड़ो पर ,पशु पंछी भी मुस्काते ।।
मायूस मन दृग कोर भींगे, जग प्रतिपालक नीर बहाते ।।
लाभ योजनाओं के पहुँचे , नेहिल दीप जलाएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी , सौगात शुभ्र लाएगा ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून
जग प्रतिपालक नीर बहाते
16 / 14 अंत तीन गुरु
आशाओं का संदेश लिए, नव प्रभात जब आएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी, सौगात शुभ्र लाएगा ।।
उषा काल धरणीधर देखो,मुदित खड़े वह रेतों में।
साँझ सवेरे धूल सने तन, श्वेद बहाते खेतों में ।।
करे परिश्रम सच हो सपने, नित गगन निहारे वो ।
दो बूँद बरस जा री मेघा ,नित भविष्य सँवारे वो ।।
खेतो में फसले लद जाए ,हृदय कमल खिल जाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।
कृषक दुखी है, व्यापारी, स्वार्थी भाव गिराता है ।
झूठे सपने भरे नयन में,क्यों मन को भरमाता है।।
सेठ, सरकार जब छल करता,श्रमजीवी बस रोता है ।
गुदड़ी सीकर वस्त्र पहनता,बीज खुशी का बोता है ।।
मोल परिश्रम का मिल जाए, गीत खुशी के गाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।
पूँजी नहीं यकीं हाथों पर , फिर भी खेत लहलहाते ।
अपना पीठ जलाते हलधर , मरु में सोना उपजाते ।।
फल फूल लदे हैं पेड़ो पर ,पशु पंछी भी मुस्काते ।।
मायूस मन दृग कोर भींगे, जग प्रतिपालक नीर बहाते ।।
लाभ योजनाओं के पहुँचे , नेहिल दीप जलाएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी , सौगात शुभ्र लाएगा ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून
जग प्रतिपालक नीर बहाते
Saturday 5 June 2021
नम चदरिया एहसासों की
विथा गीत - 16/ 14
एहसासों से नम चदरिया ,चाँदनी रैन उदास है ।
बावरे नैन अब बिना पिया, बिखर रहे सभी आस है।
कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े , कामदेव को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें, नूतन सपना नैन दिए।
फूली सरसों जब आशा की, पोर पोर में नेह भरी ।
बासंती तन मन अरुणाई, सुरभित वसुधा हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है ।
एहसासों से नम...।।
पीले श्वेत वसन पहने हैं, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल कंठ सुधा बरसे हैं, मंजीरा लिए टोलियाँ ।।
राग अनुराग पले हृदय में , बसंत उतरे हैं अँगना ।
लगे सुहावन दृश्य सभी तब, उन्मादित सजनी सजना ।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास परिहास है ।।
एहसासों से नम चदरिया....
सुरम्य गगन इन्द्रधनु छाया ,चहके हृदय खग वृन्द का ।
मन आंगन है अब खिला खिला, चला बाण कामदेव का ।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन है ,कब प्रियतम के भाग जगे ।
मधुरिम मधुमास द्वार आए ,प्यास प्रीत की हृदय पगे ।।
नित दिन नैना अब बहते हैं, प्रीतम नहीं बहुपास हैं ।
एहसासों से नम ....
छटा निराली चहूँ ओर है, शुचि सौरभ से पुहुप लदे।
घायल उर है मदन चाप से, तोड़ दिए फिर भ्रमर हदें।
रंग उमंग पिय भरमाये , आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे ।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।
एहसासों से नम चदरिया, चाँदनी रैन उदास है।
बावरे नैन अब पिया बिना ,बिखर रहे सभी आस हैं।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून
एहसासों से नम चदरिया ,चाँदनी रैन उदास है ।
बावरे नैन अब बिना पिया, बिखर रहे सभी आस है।
कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े , कामदेव को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें, नूतन सपना नैन दिए।
फूली सरसों जब आशा की, पोर पोर में नेह भरी ।
बासंती तन मन अरुणाई, सुरभित वसुधा हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है ।
एहसासों से नम...।।
पीले श्वेत वसन पहने हैं, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल कंठ सुधा बरसे हैं, मंजीरा लिए टोलियाँ ।।
राग अनुराग पले हृदय में , बसंत उतरे हैं अँगना ।
लगे सुहावन दृश्य सभी तब, उन्मादित सजनी सजना ।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास परिहास है ।।
एहसासों से नम चदरिया....
सुरम्य गगन इन्द्रधनु छाया ,चहके हृदय खग वृन्द का ।
मन आंगन है अब खिला खिला, चला बाण कामदेव का ।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन है ,कब प्रियतम के भाग जगे ।
मधुरिम मधुमास द्वार आए ,प्यास प्रीत की हृदय पगे ।।
नित दिन नैना अब बहते हैं, प्रीतम नहीं बहुपास हैं ।
एहसासों से नम ....
छटा निराली चहूँ ओर है, शुचि सौरभ से पुहुप लदे।
घायल उर है मदन चाप से, तोड़ दिए फिर भ्रमर हदें।
रंग उमंग पिय भरमाये , आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे ।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।
एहसासों से नम चदरिया, चाँदनी रैन उदास है।
बावरे नैन अब पिया बिना ,बिखर रहे सभी आस हैं।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून
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