गोविन्द की घरवाली नैहर जा रखी थी ।वह अपने कमरे में चुपचाप लेटा था ।
रसोई से खटर- पटर की आवाज भी नहीं आ रही थी । माँ को अंदेशा हुआ , कहीं बेटा भूखा तो नहीं है।यह सोचकर उसके कलेजे में हूक सी उठी ।उसने फटाफट अपने हिस्से से और बरतन में बचे भोजन को निकाल कर थाली में परोसा और देवरानी के बेटे के हाथों गोविन्द के कमरे में भिजवा दिया।
देवरानी ने कहा, "जब आप भूखी रहती हैं तो गोविन्द पूछने भी नहीं आता है ।इकलौता बेटा होकर भी अलग रसोई बना रखी है ।यहाँ तक बीमारी में एक खुराक दवाई भी नहीं लाता है। फिर आप क्यों इतनी फिकर करती हैं?"
गोविन्द की माँ बोली , "क्या करूँ देखा नहीं जाता ?तुम्हीं सोचो कोई माँ भला अपनी ममता से कैसे मुक्त हो सकती है।"
प्रो उषा झा रेणु
स्वरचित देहरादून ।
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