जग में आए गर इन्सान बनकर
तो बेसहारों के मददगार बन सकूँ
आँसू पोछ होंठों पे मुस्कान लाऊँ
इतनी सुमति हृदय में भरना ईश्वर
इन्सानियत के सब फर्ज निभा सकूँ
स्वार्थ में किसी को इस्तेमाल न करूँ
ऐसी बुद्धि कभी भी न देना मुझको
अपने हिस्से भी मिल बाँट कर खाऊँ
सिर्फ मानव हित उर में देना हमको
किसी के धन के लालच में न पड़ूँ
कभी किसी के दुख में सहभागी न बनूँ
मरहम न बन सकूँ तो घाव भी न कुरेदूँ..
ऐसी मति देना किसीके जीवन संवार सकूँ
अंतस् में मेरा इतना सुविचार देना प्रभु
तमस मिटा कर ज्ञान की ज्योति जलाऊँ
एक दिन सबको खाख में मिल जाना है
फिर भी लोग एक दूसरे के हक मारते हैं
सब खुद कर ले इसांफ, दे दे सबके हक
फिर क्यों होगा नफरत का बिजारोपण
प्रभु ऐसी मति देना सब पर नेह लूटा दूँ
नफरत व कटुता को खुद से दूर भगाऊँ
प्रेम स्नेह दया को एक दूजे में बाँट लूँ
मानवता के में रंग रंग जाएँ हम सभी
मजहब की दीवार न हो हमारे दिलों में
प्रभु दो सुबुद्धि प्रेम पुष्प जग में खिला दूँ
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