Monday 3 July 2017

उड़ान

कण कण खुशियों के दाने लेके
उड़ चली आज फिर से मन पंछी 
बंधनों से मुक्त, खुले गगन के तले
गुनगुनाने लगी,छेड़ रहे राग मनके

न कोई गम न किसी का डर उसे
हवा के झोके के साथ मस्त सा
नीड़ छोड़,छूने चली चाँद व तारे
पूरे करने वो अपनी सारी हसरतें

बेफिकर सारी बंधनों से आजाद
अपने ही धुन में मस्त उड़ती जाती
अंतहीन ख्वाब सजाए पलकों तले
स्निग्ध वो महताब के शीतलता से

मन बावरा उँची उड़ानें भरते रहते 
हकीकत से जब जमीन पे आते
तो अक्ल ठिकाने लग ही जाता
समझ में आता तब आसान नहीं
बिन परवाज उड़ान जिन्दगी की

पथ को संघर्ष से जो भी सजाते
जो अधीर न होते तकलीफों में
खोखली तमन्नाओं में न फँसते
मंजिल पुकारती उसे बाँहें पसारे

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