Thursday 6 July 2017

बाल मजदूरी एक अभिशाप

विधा- अतुकान्त

जिन्दगी अजीब होती है किसी को
हँसाती किसी को रूलाती ..
लोग कितने मतलबी होते हैं
ये देख मैं हैरान रह जाती
उस बच्चे को देख सोचती,
कितने बेरहम होते हैं लोग 
बेटा बनाके लाई और माँ की
फर्ज ही नहीं निभाती वो तो
हतप्रभ उस मासूम को देखती
सेवक सा इस्तेमाल होते 
पुत्र की कमी पूरे करने को
एक अनाथ को लायी थी
पर बना डाला एक दास
जिसको हरदम पिटा करते
हमेशा काम कराते पढाई की
तो केवल खाना पूर्ति करती
पूछा एक दिन बेटा आपका
पढाई कैसा करता है
हँसकर बोली वो तो
हरदम खेलता रहता है
बहुत दुखी हुई मैं एक दिन,
वो बोली थोड़ा बड़ा होगा तो
कर लुँगी मैं अपनी छुट्टी
जहाँ जाए अपनी बला से
उनको बिस्मित सी रह गई मैं
जो बच्चा उनको माँ बाप मानता
उनमें ही ढूंढा ममता
फिर क्यों बेरहम बन
करती  उपहास मानवता  ..
बेटा के आड़ में तो क्या
बाल मजदूरी कराना था
जिन्दगी भी अजीब होती है
किसी को हँसाती किसी को रूलाती ..
 

 

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