Wednesday 5 July 2017

आसक्ति

आज हर संबंधों में लगाव कम
फालतू का दिखावा अधिक है
फायदे और नुकसान के तर्ज
ही रिश्तों  के आधार हो रहें हैं

जीते थे जिनके मुस्कान के लिए
वो ही बुढ़ापे का आसरा छीन लिए
जाने क्यों खून के रिश्ते झूठे होते
क्योंकर स्वार्थी व निष्ठुर हो रहे हैं

ममता अनाथाश्रम में रो रही है
सपूत स्वार्थ में ही क्यों लिप्त है?
माँ के दूध का कर्ज चुकाए बगैर
पल पल उनसे दूर होते जा रहे हैं

लालसाओं के कुपमंडुताओ में
जीवन पर्यन्त सभी उलझे रहते हैं
अनंत इच्छाओं के मकड़ जाल में
सब अपनी परिधि में घिरे हुए हैं

बेड़ियों से हम मुक्त रखें खुद को,
सफर आसानी से कट ही जाएगी
मोह व आसक्ति के भंवर जाल से
क्यों ना सब कोई खुद को दूर रखें
एक दिन छोड़ जाना है संसार को ...

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