प्रकृति के रूप अनेक ..
कभी धधकती धरा को
बूँदे अमृत बन ,
बरसा जाती ।
देख बारिश के बूँदे ..
मोर नाचने लगता ..
पपीहे मधुर संगीत
छेड़ देता ..
सजनी को साजन से
मिलने की आतुरता
बढ़ा जाता ।
प्रकृति के रूप अनेक ..
कभी बिन नीर के
पशु और पंछियाँ
विह्वल हो जाते
सूख रही नदी नाले
ताल तलैया ,और
पेड़ पौधे ..
दो बूँद जल के लिए
तरस ही जाते ।
प्रकृति के रूप अनेक ..
कभी बारिश बन
प्रलयंकारी ..
अपने रोद्र रूप से
जिन्दगी को तहस
नहस कर जाती ..
ताण्डव नृत्य दिखा
नीर बहा जाती ..
धरा के सभी जीवित
आधार शीला को ।
प्रकृति के रूप अनेक ..
जल के प्रचंड वेग
बन बाढ की विभत्ष
विभिषिका
जीने के लिए
कुछ न छोड़ती
उम्मीद की किरणें
डूबा जाती
कर जाती बेजार
जिन्दगी को...
प्रकृति के रूप अनेक ..
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