Tuesday 22 August 2017

दृढनिश्चयी पथिक

वो सूनसान विरान
अजनबी से बेगाने रास्ते ,
बिना कोई सहचर ..
एकाकीपन से भरे राहों
में गुजरता जा रहा है ..
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।
 सघन वन अति दुर्गम
बिषमताओं से भरा ..
पथ है कठिन और दुश्वर
पर बढते चले जाते राहों में
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।
चाहे  हो कितने ही पथरिलि ,
लाख काँटे बिछे हों राहों में ..
पर हिम्मत से बढते चले जाते
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।
कितने ही आँधी और तूफान आए
चाहे रास्ते हो कितने ही बर्फिली ,
मंजिल दिखाई भी न दे रहा हो ,
पर रूकते कहाँ हैं ?
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।
है लक्ष्य चलते चले ही जाना ,
राहों में कितने ही अंधियारा हो
या हो अंतहीन घोर सन्नाटा ,
पर डगमगाते नहीं कदम ..
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।
जिसका एक ही हो लक्ष्य
कुछ भी हो, पाना है मंजिल..
उसे डराते नहीं राहों की दुश्वारियाँ
वो संताप नहीं करते अपनी हार से ..
वो दृढनिश्चयी अडिग पथिक ।।

No comments:

Post a Comment